धर्म-कर्म दुनिया में
प्राणवायु भरना
कब सीखा पीपल ने
भेदभाव करना?
फल हों रसदार या
सुगंधित हों फूल
आम साथ हों
या फिर जंगली बबूल
कब सीखा
चिन्ता के
पतझर में झरना
कीट, विहग, जीव-जन्तु
देशी-परदेशी
बुद्ध, विष्णु, भूत, प्रेत
देव या मवेशी
जाने ये
दुनिया में
सबके दुख हरना
जितना ऊँचा है ये
उतना विस्तार
दुनिया के बोधि वृक्ष
इसका परिवार
कालजयी
क्या जाने
मौसम से डरना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
कालजयी
क्या जाने
मौसम से डरना.....बहुत सुंदर. आपको हार्दिक बधाई.
बहुत सुन्दर ...बधाई आप को
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
मित्र, पीपल को आलंबन मानकर लिखा गया यह गीत अपनी मौलिक्ताके कारण पाठको को अवश्य पसंद आयेगा i मेरी शुभ कामना i
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
बहुत बहुत धन्यवाद vijay nikore जी। स्नेह बना रहे।
बहुत बहुत शुक्रिया BHRAMAR जी
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................ |
इस अति सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।
धर्म-कर्म दुनिया में
प्राणवायु भरना
कब सीखा पीपल ने
भेदभाव करना?
सुन्दर सन्देश ..न जाने कब लोग इस सब पर अमल करेंगे
भ्रमर ५
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