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नवगीत : कब सीखा पीपल ने भेदभाव करना

धर्म-कर्म दुनिया में

प्राणवायु भरना

कब सीखा पीपल ने

भेदभाव करना?

फल हों रसदार या

सुगंधित हों फूल

आम साथ हों

या फिर जंगली बबूल

कब सीखा

चिन्ता के

पतझर में झरना

कीट, विहग, जीव-जन्तु

देशी-परदेशी

बुद्ध, विष्णु, भूत, प्रेत

देव या मवेशी

जाने ये

दुनिया में

सबके दुख हरना

जितना ऊँचा है ये

उतना विस्तार

दुनिया के बोधि वृक्ष

इसका परिवार

कालजयी

क्या जाने

मौसम से डरना

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by coontee mukerji on May 27, 2014 at 6:31pm

कालजयी

क्या जाने

मौसम से डरना.....बहुत सुंदर. आपको हार्दिक बधाई.

Comment by Meena Pathak on May 27, 2014 at 4:03pm

बहुत सुन्दर ...बधाई आप को 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 2:54pm

बहुत बहुत धन्यवाद डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2014 at 11:43am

मित्र, पीपल को आलंबन मानकर लिखा गया यह गीत अपनी मौलिक्ताके  कारण पाठको को अवश्य  पसंद आयेगा i  मेरी शुभ  कामना i  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 11:22am

बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 11:21am

बहुत बहुत धन्यवाद vijay nikore जी। स्नेह बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 27, 2014 at 11:21am

बहुत बहुत शुक्रिया BHRAMAR जी

Comment by Shyam Narain Verma on May 26, 2014 at 5:20pm
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................
Comment by vijay nikore on May 26, 2014 at 3:34pm

इस अति सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 3:14pm

धर्म-कर्म दुनिया में

प्राणवायु भरना

कब सीखा पीपल ने

भेदभाव करना?

सुन्दर सन्देश ..न जाने कब लोग इस सब पर अमल करेंगे
भ्रमर ५

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