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वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है
परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है
हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी
चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है
गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई
वो लड़का बोझ से ही सयाना हो गया है
है बन्जर चाँद तो ताज में है सिर्फ कब्रें
लो हुश्नो इश्क का भी खुलासा हो गया है
हैं लालच बैर नफ़रत भरा इस दिल मैं अब तो
मुहब्बत के लिए मार्ग सँकरा हो गया है
खबर मरने की आएगी अखबारों में उसके
सियासत के लिए अब वो खतरा हो गया है
है गम तुझको बिछड़ने का मुझसे मेरे यारा
कि खत में स्वाद शब्दों का खारा हो गया है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
ग़ज़ल की बह्रों को निभाने में सहुलियत हो रही है अब.
कुछ दोषों की ओर भी ध्यान दिया करें. जैसे, शिकस्ते नारवा का दोष.
शुभेच्छाएँ.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
उम्दा गजल , बधाई आपको ।
वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है
परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है ------------- बहुत खूब , भाई गुमनाम जी , हार्दिक बधाइयाँ ॥
हैं लालच बैर नफ़रत भरा इस दिल मैं अब तो
मुहब्बत के लिए मार्ग सँकरा हो गया है...............वर्तमान का कटु सत्य, बधाई आदरणीय गुमनाम जी
वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है
परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है ...विचारपूर्ण बेहतरीन ग़ज़ल ..बहुत बहुत बधाई i
समाज की कितनी सारी विकृतियाँ हैं....एक एक शेर चीख चीख कर कह रहा है.
Friend,
बात कहते हो इस तरह के मुझे भी अपना ख्याल याद आ गया है
इंसा बनने से मजबूर वरना ज़िद आरज़ू का सिला याद आ गया है
शुक्रिया दोस्तो आपने सराहा कोशिश सफल हुई
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