आखिर कैसा देश है ये ?
- कि राजधानी का कवि संसद की ओर पीठ किए बैठा है ,
सोती हुई अदालतों की आँख में कोंच देना चाहता है अपनी कलम !
गैरकानूनी घोषित होने से ठीक पहले असामाजिक हुआ कवि -
कविताओं को खंखार सा मुँह में छुपाए उतर जाता है राजमार्ग की सीढियाँ ,
कि सरकारी सड़कों पर थूकना मना है ,कच्चे रास्तों पर तख्तियां नहीं होतीं !
पर साहित्यिक थूक से कच्ची, अनपढ़ गलियों को कोई फर्क नहीं पड़ता !
एक कवि के लिए गैरकानूनी होने से अधिक पीड़ादायक है गैरजरुरी होना !
आखिर कैसा देश है ये ?
- कि बाँध बनकर कई आँखों को बंजर बना देतें हैं ,
सड़क बनते ही फुटपाथ पर आ जाती है पूरी की पूरी बस्ती !
कच्ची सड़क के गड्ढे बचे हुआ बस्तीपन के सीने पर आ जाते हैं !
बूढी आँखों में बसा बसेरे का सपना रोज कुचलतीं है लंबी-लंबी गाडियाँ !
समय के सहारे छोड़ दिए गए घावों को समय कुरेदता रहता है अक्सर !
आखिर कैसा देश है ये ?
- कि बच्चे देश से अधिक जानना चाहतें हैं रोटी के विषय में ,
स्वर्ण-थाल में छप्पन भोग और राजकुमार की कहानियों को झूठ कहते हैं ,
मानतें हैं कि घास खाना मूर्खता है जब उपलब्ध हो सकती हो रोटी !
छब्बीस जनवरी उनके लिए दो लड्डू ,एक छुट्टी से अधिक कुछ भी नहीं !
आखिर कैसा देश है ये ?
- कि माट्साब कमउम्र लड़कियों को पढाते हैं विद्यापति के रसीले गीत ,
मुखिया जी न्योता देते हैं कि मन हो तो चूस लेना मेरे खेत से गन्ने !
इनारे पर पानी भरती उनकी माँ से कहते है कि तुम पर गई है बिल्कुल !
दुधारू माँ अपने दुधमुहें की सोच कर थूक घोंट मुस्कुराती है बस -
कि अगर छूट गई घरवाले की बनिहारी भी तो बिसुकते देर न लगेगी !
आखिर कैसा देश है ये ?
- कि विद्रोही कविताएँ राजकीय अभिलेखों का हिस्सा नहीं है !
तेज रफ़्तार सड़कें रुके हुए फुटपाथों के मुँह पर धुँआ थूक रही हैं !
बच्चों से कहो देशप्रेम तो वो पहले रोटी मांगते हैं !
कमउम्र लड़कियों से पूछो उनका हाल तो वो छुपातीं हैं अपनी अपुष्ट छाती !
माँ के लिए बेटी के कौमार्य से अधिक जरूरी है दुधमुहें की भूख !
वातानुकूलित कक्ष तक विकास के आँकड़े कहाँ से आते हैं आखिर ?
कविताओं के हर प्रश्न पर मौन रहती है संसद और सड़कें भी !
निराश कवि मिटाने लगता है अपने नाखून पर लगा लोकतंत्र का धब्बा !
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...................................................................................... अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत धन्यवाद Meena Pathak जी !
coontee mukerji मैम , लगता है कि निरुत्तर होना ही नियति है हम सब की !
सराहने के लिए बहुत धन्यवाद जितेन्द्र 'गीत' जी !
शिज्जु शकूर सर , धन्यवाद जो आपने मेरी रचना को समय दिया और उसके मर्म तक पहुँचे ! सादर !
बहुत धन्यवाद Ramesh Sachdeva जी !
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर , आपसे सराहा जाना मेरे लिए संतुष्टि का विषय है ! सादर धन्यवाद आपको !
आदरनीय अरुण भाई , आपके हर प्रश्न गाइडेड मिसाइल की तरह हैं , जहाँ का निशाना था वहीं लगा है , बहुत खूब , बधाइयाँ ॥
आ0 अरुण जी , सटीक प्रश्न किए आपने , शायद सभी निरुत्तर होंगे , देश के प्रति कवि की पीड़ा साफ झलती है । आपको बधाई इस अनुपम रचना के लिए ।
साधुवाद आप को इस रचना के लिए | सादर
अनगिंनत प्रश्नों की बौछार हो गयी.......कौन उत्तर दे....हर कोई निरुत्तर है....साधुवादधुवाद.
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