For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसका वो अंश है ……

जिसका वो अंश है ……

कौन है ज़िंदा ?
वो मैं,जो सांसें लेता है
जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण में नज़र आता है
जो झूठे दम्भ के आवरण में जीवन जीता है

या

वो मैं जो अदृश्य हो कर भी सबमें समाया है
न जिसकी कोई काया है
न जिसका कोई साया है

कितना विचित्र विधि का विधान है
एक मैं, नश्वरता से नेह करता है
एक मैं, अमरत्व के लिए मरता है
मैं के परिधान में जो मैं ज़िंदा है
वही प्रभु का सच्चा परिंदा है
दुनियावी मैं को दुनियावी इंसान ले जाते हैं
भस्म होने तक उसे शमशान में जलाते हैं
उसकी भस्म गंगा में बहाते हैं
चार आंसूओं से रिश्तों को निभाते हैं
एक वज़ूद को इतिहास बनाते हैं

एक मैं को चार बन्दे नहीं, स्वयं प्रभु ले जाते हैं
उसे भस्म नहीं, बल्कि अमर बनाते हैं
उसे पुनर्जन्म का आवरण पहनाते हैं

मैं और मैं का ये चक्र यूँ ही चलता रहता है
एक सदा भस्म होता है एक अमरत्व पाता है
मगर जीव इस भेद को कहाँ समझ पाता है
बस साँसों के आने-जाने को ही वो जीवन समझता है
जिस दिन वो मैं और मैं का भेद पा जाएगा
सच, वो जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति पा जाएगा
फिर जिसका वो अंश है उसमें समा जाएगा

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 10, 2014 at 2:48pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2014 at 9:10pm

द्वैत को सुन्दर शब्द मिले हैं आदरणीय.

हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2014 at 12:16pm

आदरणीय  विजय मिश्र जी   रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2014 at 6:36pm
बहुत सुंदर , एक मैं में निहित मैं द्वय की अत्यन्त प्रभावी अभिव्यक्ति , बधाई भाई सुशीलजी |
Comment by Sushil Sarna on June 4, 2014 at 6:05pm

 आदरणीय गिरिराज भंडारी जी   रचना पर आपकी  आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2014 at 6:03pm

 आदरणीया अन्नपूर्णा  जी   रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 9:45am

आदरणीय , शरीर और आत्मा की वास्त्विकता बहुत सुन्दर बयान किया है आपने , बधाइयाँ ॥

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:47am

बहुत बढ़िया !! बधाई आपको इस रचना के लिए । 

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2014 at 10:17am

आदरणीया लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी  रचना पर आपकी मुक्त आत्मीय  सराहना का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2014 at 10:16am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी  रचना पर आपकी आत्मीय  सराहना का हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service