For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ कुण्डलिया छंद

 

[1] 

पूजनीय हैं  माँ-पिता, सदा करो सम्मान ।

जीवन दाता है यही, खुदा यही भगवान ॥

खुदा यही भगवान, धर्म निज खूब निभाते ।

संतानों को पाल - पोस कर नेह लुटाते ॥

मन से दो तुम मान सदा ये बंदनीय है ।

करें  अहेतुक प्यार  हमारे पूजनीय हैं  ॥

[2]

माया छलना मोहती , धारे रूप अनेक ।

केवल माला फेरता,  कैसे हो तू नेक ॥

कैसे हो तू नेक,  फंसाए तुझको माया ।

जाल बिछा हर ओर उलझती जाती काया ॥

मानो  मेरी बात,   न अब फँस पाये काया ।

भज लो प्रभु का नाम, भूल ये सारी माया ॥

[3]

नारी, माँ, दारा, सुता,  धारे रूप अनेक ।

बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ।।

धीरज धर्म विवेक सभी संबंध निभाती ।

खुशियाँ भर कर गेह निरंतर ही मुसकाती ॥

छलका गागर नेह सभी पर ही बलिहारी ।

कैसे करूँ बखान  असीमित अनुपम नारी ॥

[4]

लेखन व्यवसायी हुआ भाषा भूले लोग ।

बेगानी हिन्दी हुई लगा इंगलिशी रोग ॥

लगा इंग्लिशी रोग सभी गिटपिट बतियाते ।

निज भाषा को छोड़ आंग्ल भाषा अपनाते ॥

लिखते ऊल जलूल  नहीं कोई संवेदन ।  

भूले सब साहित्य बना व्यवसायी लेखन ॥

[5]

सास ससुर अब रिपु लगें नहीं सुहाती नन्द ।

जेठ जिठानी से ठनी , कहाँ मिले आनंद ॥

कहाँ मिले आनन्द लग रहे देवर दुश्मन ।

देवर-पत्नी खूब  दिखाती अपने ठनगन ॥

नहीं किसी से प्रेम आस पीहर से ही सब ।

बस प्रियतम को छोड़,  न भाते सास ससुर अब॥

[6]

होली के हुड़दंग मे प्रिय मत जाना भूल ।

मिलना सबसे प्रेम से चुभे न कोई शूल ॥

चुभे न कोई शूल , खिलाओ पुष्प प्यार के ।

सबसे मिलिये खूब प्यार के रँग निखार के ॥

मानो मेरी बात , करो तुम खूब ठिठोली ।

जी भर खेलो रँग , बने मतवाली होली ॥

[7]

फागुन आयो री सखी , मनुवा भयो मयूर ।

अमवा पर बौरें खिलीं , कोकिल करती कूक ॥

कोयल करती कूक , मधुर सुर मे है गाती ।

छेड़ नेह का राग , सभी का मन बहलाती ॥

सुनकर उसकी तान , सभी देते है काकुन ।

रंगो का त्योहार , सदा ही लाता है फागुन ॥

 

 [8]

भीम नाद सी गूंज हो , अनुपम यह उद्घोष ।

भरे क्रांति मे रंग , फिर भगत सिंह सा जोश ॥

भगत सिंह सा जोश , सुभाष सी ललकार हो ।

वीरांगना हर नार  , लक्ष्मी सी शानदार हो ॥

भगत सिंह से काम,  सोच अपनी आजाद सी ।

करे भारती नाद  गूंज हो भीम नाद सी ।। 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on June 3, 2014 at 10:35pm

वाह जी वाह ..... बहुत सुन्दर कुंडलियाँ .. बधाई आप को 

Comment by coontee mukerji on June 3, 2014 at 9:27pm

बहुत सुंदर कुण्डलियाँ है......आपको हार्दिक बधाई है....सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 3, 2014 at 6:48pm

सारी ! अनुपमा जी कुछ अधूरा रह गया फिर से देखे-

 

नहीं किसी का प्रेम है  पीहर से सब आस i

बस प्रियतम को छोड़ अब  भाते ससुर न सास ii   सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 3, 2014 at 6:41pm

अनुपमा जी '

बहुत अच्छी कुण्डलिया  रची आपने i  एक गुस्ताखी मै करता हूँ  i  आप क्षमा करियेगा i

 

बस प्रियतम को छोड़, अब भाते ससुर न सास

 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service