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मुल्क़ में किस्सा इक नया तो हो
अब अज़ीयत की इंतिहा तो हो अज़ीयत =यातना
ग़म से किसको मिली नजात यहाँ
मर्ज़ कहते हो फिर दवा तो हो
जी उठेगा फिर अपनी राख से पर
वो मुकम्मल अभी जला तो हो
दीनो-ईमाँ की बात करते हैं
हो हरम दिल में बुतकदा तो हो हरम =मस्जिद, बुतकदा =मंदिर
ज़ह्र अपनी ज़बान से छूकर
कह रहे हैं कि तज़्रिबा तो हो
रुख़ हवा का बदल गया है “शकूर”
किस तरफ चलना है पता तो हो
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब ..क्या कहने ..वाह
जी उठेगा फिर अपनी राख से पर
वो मुकम्मल अभी जला तो हो......वाआआआआआअह शकूर भाई वाआआआअह हर अशआर ग़ज़ल का शानदार .... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर गज़ल है...आपको दिल से बधाई.
शिज्जू भाई
हमशा की तरह एक सुन्दर गजल i सभी अशआर अच्छे है किसी एक की दाद क्या दूं i शुभकामनाएं i
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