आँसुओं से हम गजल लिखते रहे
कागजों में दर्द बन बिकते रहे
वो पराये हो चुके थे अब तलक
और हम अपना समझ झुकते रहे
पीठ पर वो बार करने का हुनर
उम्र भर हम याद ही करते रहे
हद से ज्यादा हम हुये जब गमजदा
बारबा वो खत तेरा पढ़ते रहे
तू गया कितने जलाकर आशना
आशना वो आज तक जलते रहे
हम समझ कर आदमी को आदमी
साथ हम शैतान के चलते रहे
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय उमेश कटारा जी ग़ज़ल तो अच्छी कही है आपने, बस मतले में ईता दोष आ रहा है ज़रा देख लें
अच्छी ग़ज़ल लिखी है आ० उमेश जी ..हार्दिक बधाई आपको
शानदार अशरार कहे है ,लाजवाब गज़ल
बहुत सुन्दर .. सादर बधाई
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