For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( गिरिरज भंडारी ) --वही चाहतें हैं डरी- मरी

11212      11212       11212     11212 

कई बाग़ सूने हुये यहाँ , कई फूलों में हैं उदासियाँ

कई बेलों को यही फिक्र है , कि कहाँ गईं मेरी तितलियाँ

कभी दूरियाँ बनी कुर्बतें, कभी कुरबतें बनी दूरियाँ

ये दिलों के खेलों ने दी बहुत , हैं अजब गज़ब सी निशानियाँ

कभी आप याद न आ सके, कभी हम ही याद न कर सके

रहे शौक़ में हैं लिखे मिले , कई गम ज़दा सी रुबाइयाँ  

वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभीं खार बनके इधर उधर

सुनो वो चुभन ही सुना रही ,है हक़ीक़तों की कहानियाँ

वही हालतें हैं गरीब की , वही चाहतें हैं डरी- मरी

कहीं तिफ्ल भूख से मर गया , कहीं बिक रहीं हैं जवानियाँ

मेरा ज़ख्म पीठ का भर गया , मेरा ताप सर से उतर गया

नहीं भर रहीं हैं खुदी हुई,  वो जो दरमियान थी खाइयाँ 

*******************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 930

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2014 at 7:12am
आदरणीय सौरभ भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । छोक पर आपकी सलाह के लिये भी अलग से दिली शुक्रिया । अभी संशिधन के लिये भेज रहा हूँ ॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2014 at 11:57pm

इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद भाईजी.

वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभे खार बनके इधर उधर   =   वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभीं खार बनके इधर-उधर .. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2014 at 6:50pm

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , गज़ल को आपका आशीर्वाद मिलना , मेरे लिये बहुत खुशी की बात है । सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2014 at 6:48pm
आदरणीय सुशील शनर भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
Comment by vijay nikore on June 24, 2014 at 5:49pm

बहुत ही अच्छी गज़ल लिखी है। साधुवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 12:45pm

वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभे खार बनके इधर उधर
सुनो वो चुभन ही सुना रही ,है हक़ीक़तों की कहानियाँ …… बहुत ही उम्दा भावों की शानदार ग़ज़ल .... हर शेर पर हमारी दाद कबूल फरमाएं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:33pm

आदरणीया कल्पना जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥ आपकी सलाह पर सोच कर ज़रूर सुधार करूँगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:31pm

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:30pm

आदरणीय नादिर खान भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:29pm

आदरणीया मंजरी जी , सराहना के लिये आपका आभार ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service