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हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं
डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं
मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी
कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको
समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं
सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब
तभी हर बात में कहने लगे वो हम तुम्हारे हैं
अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब
बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर मेरी यह कोशिस आपको बहुत अच्छी लगी ... इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ...
एक बहुत अच्छी कोशिश के लिए दिल से दाद संजूजी.
सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब
तभी हर बात में कहने लगे वो हम तुम्हारे हैं............. इस शेर पर विशेष दाद दे रहा हूँ..
आ0 प्राची दी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय जितेंद्र गीत जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय उमेश जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
दिल को छू लेने वाले अशआर कहे हैं प्रिय संजू शब्दिता जी
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको
समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं
अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब
बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं
ये दो शेर ख़ास पसंद आये
मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी
कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं............बहुत खूब, आजकल यही सब कुछ पा रहा है अपनों से इंसान
बहुत लाजवाब गजल कही आपने आदरणीया संजू जी, हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया सुन्दर गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई
आदरणीया संजू जी , खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , आपको ढेरों बधाइयाँ ।
मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी
कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं ------ बहुत खूब , आदरणीया , बधाई ॥
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