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हमारे प्यार को वो अब निभाती भी नहीं है
जलाये क्यों हमारा दिल बताती भी नहीं है
लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी
कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है
बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है
बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है
करें किससे शिकायत जिन्दगी की हम बताओ
कभी भी प्यार से मुझको बुलाती भी नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमी
Comment
उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्पर्श आप का आशीवाद बना रहें आदरणीय डा विजय शंकर जी
उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्पर्श आप का आशीवाद बना रहें आदरणीय अभिनव अरूण जी
गहमरी जी
बहुत सुन्दर i दर्द नुमायाँ हो रहा है i बधाई हो i
उत्सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्पर्श मैं अवश्य प्रयास करता हूँ आप का आशीवाद बना रहें आदरणीया राजेश कुमारी जी
वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० अखंड गहमरी जी ,हर अशआर में टूटे दिल का आक्रोश उभर कर आया है
बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है-------कहीं तो प्यार बचा हुआ है .इसी लिए ..सुन्दर शेर
बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है------इस अशआर को कुछ और स्पष्ट करने के लिए प्रयास करें
बहुत बहुत बधाई आपको
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