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बनाया था महल मैनें गजल

1222 1222 1222 122

हमारे प्‍यार को वो अब निभाती भी नहीं है
जलाये क्‍यों हमारा दिल बताती भी नहीं है

लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी
कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है

बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है

बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्‍दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है

करें किससे शिकायत जिन्‍दगी की हम बताओ
कभी भी प्‍यार से मुझको बुलाती भी नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमी

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Comment by Akhand Gahmari on June 18, 2014 at 7:25pm

उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्‍पर्श  आप का आशीवाद बना रहें आदरणीय डा विजय शंकर जी

Comment by Akhand Gahmari on June 18, 2014 at 7:24pm

उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्‍पर्श  आप का आशीवाद बना रहें आदरणीय अभिनव अरूण जी

Comment by Abhinav Arun on June 18, 2014 at 11:42am
करें किससे शिकायत जिन्‍दगी की हम बताओ
कभी भी प्‍यार से मुझको बुलाती भी नहीं है...बहुत खूब ग़ज़ल हुई है अखंड जी हार्दिक बधाई !!
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2014 at 11:06pm
सुन्दर , बधाई ,
सादर.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2014 at 2:02pm

गहमरी जी

बहुत सुन्दर i  दर्द नुमायाँ हो रहा है i  बधाई हो i

Comment by Akhand Gahmari on June 17, 2014 at 1:13pm

उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन के लिये आपको चरण स्‍पर्श मैं अवश्‍य प्रयास करता हूँ आप का आशीवाद बना रहें आदरणीया राजेश कुमारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2014 at 12:16pm

वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० अखंड गहमरी जी ,हर अशआर में टूटे दिल का आक्रोश उभर कर आया है 

बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है-------कहीं तो प्यार बचा  हुआ है .इसी लिए ..सुन्दर शेर 

बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्‍दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है------इस अशआर को कुछ और स्पष्ट करने के लिए प्रयास करें 

बहुत बहुत बधाई आपको 

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