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ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये - ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये

बेख़िरद को सिर्फ़ चेहरा चाहिये                      बेख़िरद =कम अक्ल

 

हो गया है ताज़िरों का ये वतन                        ताज़िर=व्यापारी

खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये

 

बच तो आयें लहरों से अहले जिगर

बस उन्हें कोई किनारा चाहिये

 

तख़्त पर जिसने बिठाया उनका कर्ज़

जानो दिल से अब चुकाना चाहिये

 

आप भी हँस लीजिये इस बात पर

झूठे को अब काम सच्चा चाहिये

 

बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत

अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on June 18, 2014 at 12:48pm

बच तो आयें लहरों से अहले जिगर

बस उन्हें कोई किनारा चाहिये------शानदार शेर वाह्ह्ह 

सुन्दर ग़ज़ल हुई शिज्जू भैय्या ..तहे दिल से दाद कबूलें 

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 12:29pm

हो गया है ताज़िरों का ये वतन                      

खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये..........वाह! यह है आज के लिए

बहुत बढ़िया गजल लगी आदरणीय शिज्जू जी, सभी शेर वर्तमान का आइना दिखाते हुए. दिली बधाई  लीजिये

आप जो कठिन शब्दों का अर्थ समझा देते है उसके लिए शुक्रिया

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2014 at 11:00am

आ० भाई शिज्जु जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .

कृपया ध्यान दे...

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