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सूचना क्रांति (लघुकथा) रवि प्रभाकर

कुछ ही मिनट पहले विदेश में जन्मे अपने पौत्र की तस्वीरें इंटरनेट पर देख रहे दंपति को खुशी से झूमते देखकर  कोने में बैठा घर का नौकर भी अपने बेटे के कद काठ के बारे कयास लगा रहा था जिसे वह कुछ साल पहले गांव छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ गया था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 20, 2014 at 12:21pm
कोई छोड गया, तो कोई छोड आया है. कुछ ही शब्द दिल को छू गये आपकी लेखनी को नमन आदरणीय रवि जी

कृपया ध्यान दे...

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