मालिक और महा प्रबंधक कंपनी में चल रही हड़ताल को लेकर कुछ गंभीर विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक कुछ आवारा कुत्ते बंगले के अंदर आ घुसे। साहिब का खूंखार पालतू कुत्ता बड़ी फुर्ती से उन आवारा कुत्तों पर झपटा और उन्हें दूर तक खदेड़ आया, तभी एक नौकर धीरे से मालिक के कान में आकर फुसफुसाया
“साहिब, वो यूनीयन के दूसरी तरफ वाले लीडर आ गए है।”
मालिक के तनावग्रस्त चेहरे पर एकाएक कुटिल मुस्कुराहट आ गई, और उसने मांस का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने वफादार कुत्ते के आगे फैंक दिया ।
Comment
भाई रविजी, आपकी दृष्टि प्रखर है और व्यवहार बन गयीं आजकी कुटिल चालों को आप भलीभाँति समझते हैं, तभी आपके मन का रचनाकार विसंगतियों पर हाहाकार कर उठता है.
आज प्रबन्धन क्षेत्र में व्याप गयी घृणित प्रवृति और चाल-चलन मानवीय मूल्यों का किस तरह से हनन कर रही है यह आपकी लघुकथा खूब साझा कर रही है.
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, भाई..
शुभ-शुभ
मंच पर लघुकथा प्रकाशित होना ही मेरे लिए अत्यंत गर्व की बात है और इससे भी ज्यादा गर्व इस बात का है कि मंच के माननीय सदस्य मेरी लघुकथा को पढ़ते और कंठमुक्त सराह कर इसको अपनाते है। इसके लिए मैं मंच का धन्यवादी हूं। मैं आ. रचित जी, शशि मेहरा जी, गिरीराज जी, लक्ष्मण जी, जितेन्द्र जी, के. कुमार जी, गोपाल नारायण जी, शलिनी जी, कुन्ती जी, कल्पना रामानी जी, राजेश कुमारी जी, सविता जी व अपनी प्रिय बहन गीतिका जी का भी लघु कथा को पढ़ने, इसका मर्म समझने व टिप्पणी हेतु आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद।
बहुत जोरदार...
ishaara khoob raha
आदरणीय रवि भाई , आपकी लघु कथा गागर मे सागर है , बहुत कम शब्दों मे बहुत सटीक बातें कह दी है आपने । बधाइयाँ ।
वाह! इतनी गंभीर बात आपने जिस सहजता से नपे तुले सांकेतिक शब्दों में कह दी, यह लघुकथा को विशेष आयाम दे रही है। हार्दिक बधाई आपको
बुंदेलखंड मे एक कहावत है "घर के कुरवे से ही आँख फूटती है" .......
बधाई बढ़िया कथा के लिए आ० रवि भाई जी!
आ० रवि जी , मीरजाफरों, जयचंदों और विभीषणोनो की याद ताज़ा कराती इस लघुकथा के लिए कोटि कोटि बधाई .पर क्या ये रक्तबीज कभी ख़त्म होंगे? ....
vyangya se bharpoor satya ke kareeb .very nice ravi ji .
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