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वफादारी (लघुकथा) रवि प्रभाकर

मालिक और महा प्रबंधक कंपनी में चल रही हड़ताल को लेकर कुछ गंभीर विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक कुछ आवारा कुत्ते बंगले के अंदर आ घुसे। साहिब का खूंखार पालतू कुत्ता बड़ी फुर्ती से उन आवारा कुत्तों पर झपटा और उन्हें दूर तक खदेड़ आया, तभी एक नौकर धीरे से मालिक के कान में आकर फुसफुसाया
“साहिब,  वो यूनीयन के दूसरी तरफ वाले लीडर आ गए है।”
मालिक के तनावग्रस्त चेहरे पर एकाएक कुटिल मुस्कुराहट आ गई, और उसने मांस का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने वफादार कुत्ते के आगे फैंक दिया ।

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 20, 2014 at 12:10am

भाई रविजी, आपकी दृष्टि प्रखर है और व्यवहार बन गयीं आजकी कुटिल चालों को आप भलीभाँति समझते हैं, तभी आपके मन का रचनाकार विसंगतियों पर हाहाकार कर उठता है.
आज प्रबन्धन क्षेत्र में व्याप गयी घृणित प्रवृति और चाल-चलन मानवीय मूल्यों का किस तरह से हनन कर रही है यह आपकी लघुकथा खूब साझा कर रही है.
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, भाई..
शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2014 at 7:18pm

मंच पर लघुकथा प्रकाशित होना ही मेरे लिए अत्यंत गर्व की बात है और इससे भी ज्यादा गर्व इस बात का है कि मंच के माननीय सदस्य मेरी लघुकथा को पढ़ते और कंठमुक्त सराह कर इसको अपनाते है। इसके लिए मैं मंच का धन्यवादी हूं। मैं आ. रचित जी, शशि मेहरा जी, गिरीराज जी, लक्ष्मण जी, जितेन्द्र जी, के. कुमार जी, गोपाल नारायण जी, शलिनी जी, कुन्ती जी, कल्पना रामानी जी, राजेश कुमारी जी, सविता जी व अपनी प्रिय बहन गीतिका जी का भी लघु कथा को पढ़ने, इसका मर्म समझने व टिप्पणी हेतु आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद।

Comment by Rachit Dixit on June 18, 2014 at 4:30pm
बहुत खूब लघुकथा एक रिवाल्वर की तरह होनी चाहिए
केवल एक तर्जनी हिलाने से अभीष्ट की प्राप्ति
आपकी कथा ऐसी ही है बधाई
Comment by coontee mukerji on June 17, 2014 at 5:06pm

बहुत जोरदार...

Comment by Shashi Mehra on June 17, 2014 at 11:08am

ishaara khoob raha


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 10:00pm

आदरणीय रवि भाई , आपकी लघु कथा गागर मे सागर है , बहुत कम शब्दों मे बहुत सटीक बातें कह दी है आपने । बधाइयाँ ।

Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 7:12pm

वाह! इतनी गंभीर  बात आपने  जिस सहजता से नपे तुले सांकेतिक शब्दों में कह दी, यह लघुकथा को विशेष आयाम दे रही है। हार्दिक बधाई आपको

Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 11:26am

बुंदेलखंड मे एक कहावत है "घर के कुरवे से ही आँख फूटती है" .......

बधाई बढ़िया कथा के लिए आ० रवि भाई जी!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:40am

आ० रवि जी , मीरजाफरों, जयचंदों और विभीषणोनो की याद ताज़ा कराती इस लघुकथा के लिए कोटि कोटि बधाई .पर क्या ये रक्तबीज कभी ख़त्म होंगे? ....

Comment by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:59pm

vyangya se bharpoor satya ke kareeb .very nice ravi ji .

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