कुछ ही मिनट पहले विदेश में जन्मे अपने पौत्र की तस्वीरें इंटरनेट पर देख रहे दंपति को खुशी से झूमते देखकर कोने में बैठा घर का नौकर भी अपने बेटे के कद काठ के बारे कयास लगा रहा था जिसे वह कुछ साल पहले गांव छोड़कर नौकरी के लिए शहर आ गया था।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
एक दूर .. दूसरा खुद दूर.. कई भाव उभरे.. कई तथ्य मुखर हुए.
आपकी इस लघुकथा को मैं आपकी सबसे परिपक्व कथा कहूँ तो अन्यथा न होगा. दोनों वर्णित इकाइयों के अपने-अपने दर्द को जिस महीनी से आपने उभारा है वह काबिले ग़ौर है.
भाई दिल खुश कर दिया आपने, कथ्य से भी और शिल्प से भी. इस गहन रचना के लिए बार-बार बधाई.
शुभ-शुभ
आदरणीय राजेश कुमारी जी, जितेन्द्र भाई व शुभ्रांशु भाई, लघुकथा को अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद।
आदरणीय प्राची दी,
नमस्कार । लघुकथा पर आपकी उपस्थिती व लघुकथा के मर्म को समझने के लिए आपका धन्यवाद।
परम आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय,
सादर। आपकी लघुकथाएं पढ़ कर ही तो मैने लघुकथा लिखने का प्रयास किया है। आपकी लघुकथाएं हम जैसे नवांगतुको के लिए एक मानक है। आपकी सार्थक टिप्पणी हेतु धन्यवाद, भविष्य में भी मार्गदर्शन करते रहें।
परम आदरणीय डाॅ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी,
चरण स्पर्श। प्रस्तुत लघुकथा पर आपकी उपस्थिती एवं प्रतिक्रिया से धन्य हूं, आप सरीखे वरिष्ठ साहित्यकार की प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है। आदरणीय, मेरे विचार से एक लेखक जहां पर लघुकथा समाप्त करता है उससे आगे वह पाठक के मन-मस्तिष्क पर चलनी चाहिए और उसके अंत में जो अनकहा छोड़ दिया गया हो उसे पाठक स्वयं तलाश करें।
उम्मीद है कि भविष्य में भी आपका स्नेह बना रहेगा। सादर ।
एक ही वाक्य में दो तुलनात्मक शब्द चित्र उकेरते हुए सूचना क्रान्ति की पहुँच के एक वर्ग तक सीमित हो जाते सत्य को भी प्रस्तुत किया है....अद्भुत
बहुत कसा हुआ शिल्प
इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी
लघुकथा अपने शीर्षक से पूर्णतय: न्याय कर रही है.
सूचना क्रांति के दो अलग-अलग रूपों का मार्मिक चित्रण किया है.
नौकर की बेबसी सीने में हाथ डाल कर दिल निकल लेने वाली है। ऐसी महीन बुनावट में आपकी
पंजाबी लघुकथा शिल्प के गहन अध्ययन की झलक स्पष्ट उजागर हो रही है.
हार्दिक बधाई।
गोद में ले कर दुलारने की इच्छा दोनो की ही अधुरी है....
सुन्दर कथा...
दोनों के लिए खुशखबरी प्यारी- प्यारी ,किन्तु किस्मत न्यारी- न्यारी ....कुछ ही शब्दों आपने इस भेद को मुखरित किया है ,सुन्दर लघु कथा हेतु बधाई आपको|
रवि जी
इस रचना का व्यंग्य थोडा दुर्बोध है i आसानी से पकड़ में नहीं आता i कुछ लोग पढेंगे और सोचेंगे - कहा क्या है i पर आपको इस रचना के लिए बधाई i
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