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दंश (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“बहन ! आज मुझे काम से लौटने में देर हो जाएगी, तब तक तुम मुन्नी को अपने पास ही रखना।" उस विधवा ने हाथ जोड़ते हुए अपनी पड़ोसन से आग्रह किया।
“पर अब तो तेरा देवर भी गाँव से आया हुआ है, तो फिर.....।”
”इसीलिए तो तुम्हारे पास छोड़ रही हूँ."

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Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 9:25am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी,

संदेशपरक व्यंग्य लघुकथा, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:28am

भाई रविजी !  बहुत खूब !

हृदय से धन्यवाद और असीम शुभकामनाएँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 6, 2014 at 9:30pm

ओह ! मन मस्तिष्क सुन्न कर देती है यह लघुकथा, इस कामयाब कृति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि भाई।

Comment by विनय कुमार on July 6, 2014 at 9:08pm

बहुत गहरा दंश , बधाई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2014 at 4:02pm

आज बेटियाँ अपने ही घर में अपनों के साथ ही जिस असुरक्षा के साए में जी रही हैं....उस पर सार्थक सशक्त प्रस्तुति 

इस सारगर्भित लघुकथा का दंश बहुत दर्दनाक है...संवेदना को झकझोरने वाला है 

हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 

Comment by savitamishra on July 2, 2014 at 10:23am

घटनाओ को देखते हुए सच में रिश्ते से विशवास उठ चला है ........बढ़िया 

Comment by कल्पना रामानी on July 1, 2014 at 10:14pm

सारपूर्ण श्रेष्ठ लघुकथा। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 11:27pm
अच्छी लघुकथा। आपको बहुत बधाई।
Comment by Ravi Prabhakar on June 27, 2014 at 3:43pm

सभी महानुभावों का लघुकथा पर टिप्‍पणी हेतु धन्‍यवाद

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 27, 2014 at 12:46pm

समाज के स्थिति कितनी भयावह हो गयी है ..वर्तमान के परिदृश्य में पनपी असुरक्षा की भावना को इंगित करती इस शानदार लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर

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