जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था
बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था
मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों
मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था
सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था
उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था
पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था
जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा
बाकी ठीक है कहकर वह ताना मार जाता था
मौलिक और अप्रकाशित
मदन मोहन सक्सेना
Comment
बचपन याने जीवन के सबसे अच्छे पल, बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय मदन मोहन जी. हार्दिक बधाई आपको
बचपन का दिन कौन भुला सकाता है भला.............
जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था
बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था......हार्दिक बधाई.
बहुत खूब सुंदर ।
सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था
बहुत ही सुन्दर मदन मोहन जी!
बचपन अच्छा था - पर प्रस्तुति के लिए बधाई
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