पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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कितनी सुन्दर धरा हमारी
चंदन सा रज महके
चह-चह चहकें चिड़ियाँ कितनी
बाघ-हिरन संग विचरें
हिम-हिमगिरि वन कानन सारे
शांत स्निग्ध सब सहते
महावीर थे बुद्ध यहीं पर
बड़े महात्मा, हँस सब शूली चढ़ते
स्वर्ग सा सुन्दर भारत भू को
पूजनीय सब बना गए
पर आज ..
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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इतना सुन्दर चमन हमारा
हरी भरी कितनी हैं क्यारी
इतने श्रम से कितने पौधे
उगे बढे हैं नेह पली कुछ न्यारी
भोर हुए मलयानिल आती
सूरज किरणें इन्हे जगातीं
हलरातीं-दुलरातीं खिल-खिल
कभी गिराती -कभी उठातीं
प्रकृति सुरम्या ममता आँचल
गोदी भर -भर इन्हे सुलातीं
आसमान से परियाँ आ-आ
इतनी ख़ुशी विखेर गयीं
पर आज ....
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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फूल के संग-संग काँटे कुछ थे
कर्कश पत्थर से कठोर थे
प्रकृति की लीला -इन्हे चुने थे -
रक्षा को ! बन कवच खड़े थे
हाथ बढे जो छेड़ -छाड़ को
निज स्वभाव से चुभ-चुभ जाते
अतिशय कोई आतातायी
हानि भांप ये उन्हें भगाते
सावन सी हरियाली बगिया
फूल खिले हँस सभी लुभाते
कलरव करते कोई गाते-आते-जाते
'भ्रमर' भी गुंजन खुश हो आते
विश्व-कर्म रचना अति सुन्दर
गुल-गुलशन सब महक गए
पर आज ...
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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भोली -भाली प्यारी छवि थी
पर फ़ैलाने को थी आतुर
फूलों की जी जान से प्यारी
अल्हड़ थी ना हुयी चतुर
स्वर्णिम लगती इस दुनिया में
चकाचौंध है लोहा - पीतल
पार्वती-संग है गंधक भी -
वदन जला दे ! गंगा शीतल
है प्रकाश तो अन्धकार भी
मोह -पाश माया - दानव हैं
स्नेह कहीं बहता है अविरल
दानव के पंजे में फँस कर
रोई वो चिल्लाई दम भर
प्रेम-दुहाई – सब- देव देवियाँ
पाँव पडी कातर नैनों से
एक-एक कर तितर वितर कर
पंखुड़ियाँ सब तोड़ दिए
कुचल -मसल के रक्त -अंग सब
वेशर्मी अति शूली पर थे टांग दिए
मानवता थी आज मर गयी
बस कलंक वे छोड़ गए
कानों में है क्रंदन अब तो…
एक कली जो खिलने को थी
कुछ सहमी सकुचाई भय में
पंखुड़ियाँ सब कुचल दिए
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '
कुल्लू हिमाचल
भारत
11.45 A.M. -12.15 P.M.
08.06.2014
Comment
आदरणीय सौरभ भाई रचना पर प्रोत्साहन हेतु आभार
भ्रमर ५
प्रस्तुति हेतु धन्यवाद आदरणीय
प्रिय डॉ आशुतोष जी जय श्री राधे नारियों के सम्मान में आती गिरावट और इसमें सुधार को इंगित करती - लिखी इस रचना पर आप का समर्थन मिला सुन हर्ष हुआ
भ्रमर ५
प्रिय भाई लक्ष्मण धामी जी बहुत प्यारी प्रतिक्रिया परिवर्तन होना बहुत जरुरी है आज के बदलते युग में जब की नारियां हर क्षेत्र में हम सब का साथ दे रही हैं उनका मान सम्मान रखना उन्हें उच्च स्थान देना हमारा दायित्व बनता है आप की बधाई सर आँखों पर जय श्री राधे
भ्रमर ५
प्रिय जितेंद्र जी आभार आप का रचना मर्मस्पर्शी लगी लिखना सार्थक रहा आइये नारियों का सदा मान रखें
भ्रमर ५
आदरणीय सुरेन्द्र जी ...मर्मस्पर्शी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीय भाई सुरेन्द्र भ्रमर जी क्या कहने , जिस खूबसूरत अंदाज में आपने अतीत का सुदर वर्णन करते हुए वर्तमान के लिए एक गरिमामय संदेश दिया है वह कबिलेतारीफ है । हम हर मोड़ पर कितने पतित हुए यह रचना बखूबी इशारा करती है और साथ ही गरिमामय परिर्वन के लिए मौन आह्वान भी करती है । इस उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक नमन और बधाई स्वीकारें ।
बहुत ही मार्मिक व् प्रभावशाली रचना आदरणीय सुरेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है....लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी.....अनेक साधुवाद.
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