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भला हो या बुरा हो बस, शिकायत फितरतों में है
वो ऐसा शक्स है जिसकी बगावत फितरतों में है
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रहेगा साथ जब तक वो चलेगा चाल उलटी ही
भले ही दोस्तों में वो, अदावत फितरतों में है
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उसे लेना नहीं कुछ भी बड़े छोटे के होने से
खड़ा हो सामने जो भी, नसीहत फितरतों में है
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हुनर सबको नहीं आता हमेशा याद रखने का
भुलाए वो किसी को क्या, मुहब्बत फितरतों में है
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कड़ा रूख हुश्न अपनाए बताओ किस तरह बोलो
सुना है हमने तो यारो नजाकत फितरतों में है
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शरारत गर न करते तो कहाँ वो बच्चे कहलाते
बुढ़ापा ये नहीं अच्छा शरारत फितरतों में है
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चुभे जो सच वो कहने से जुबा चुप हो यही अच्छा
भले अच्छा तुम्हारी भी सदाकत फितरतों में है = सत्यता
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कभी वो बाढ़ देता है कभी देता अकालें वो
न जाने क्यों खुदा के भी कयामत फितरतों में है
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हरारत वक्त पर आये जरूरी है, कहावत सच = क्रोध
‘मुसाफिर’ पर नहीं अच्छा हरारत फितरतों में है
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( रचना - 12 जनवरी 2014 )
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रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’
Comment
आ0 प्राची बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .
आ0 भाई सौरभ जी , हार्दिक धन्यवाद.
रहेगा साथ जब तक वो चलेगा चाल उलटी ही
भले ही दोस्तों में वो, अदावत फितरतों में है......बहुत सुन्दर
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
अच्छा प्रयास !
दाद कुबूल करें.. .
आ० भाई विजय प्रकाश जी , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह मेरे लिए शुभ संकेत है l आपका स्नेह मिला आभार l
आदरणीय भाई जवाहरलाल जी ग़ज़ल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई मुकेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार l
आ० गीतिका जी प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर महसूस हो रहा है की ग़ज़ल लेखन में निरंतर सुधार हो रहा है l स्नेह बनाये रखे l
आ० भाई सुरेंदर जी , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
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