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अपना - अपना सच -- डा० विजय शंकर

अपना - अपना सच
------------------------

उसने सच का नाम लिया
लोगों ने उसे झूठा कहा ,
उसने सच बोलना चाहा ,
लोगों ने उसे बोलने न दिया ,
वो सच बोले बिना चला गया .
लोगों ने राहत की सांस ली ,
एक दूसरे से पूछा , " सच " !
गया ........, चला गया
कितना अच्छा हुआ ।

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:54pm

कम से कम शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया … आदरनीय विजय शंकर जी!

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 4:47pm
आदरणीय गिरिराज जी , बधाई के लिए धन्यवाद . सही कहा आपने एक सारभौमिक सत्य को छोड़ कर सबका सच अलग अलग होता है , पर कुछ उस अपने सच की कभी बात ही नहीं करते हैं , उसे कई कई तरह से छिपा कर रखते है . अपनी एक अन्य कविता की प्रथम दो पक्तियां लिख रहा हूँ , देखिये ,
हे सत्य ! तुझे क्यों नहीं
हम जीवन में ला पाते हैं ?
जब भी तेरी बात आये हम
परमात्मा पर चले जाते हैं .
--------------------------
और तब हमें सोचना पड़ता है ,does the truth prevail or it always remains in veil and doesnt come out of veil .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 29, 2014 at 11:48am

आदरनीय विजय शंकर भाई , एक सार्वभौमिक सच को छोड़ कर बाक़ी सभी सच हर व्यक्ति का अपना अलग होता ही है । सुन्दर चिंतन के लिये आपको बधाई ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 10:20am
आदरणीय जितेंद्र जी, रचना पसंद आई आपको , बहुत बहुत धन्यवाद . सच के लिए सत्यवाद.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:23am

आपकी छोटी सी रचना, बहुत सशक्त सन्देश दे रही है. यहाँ सबके अपने-अपने सच है चाहे वो किसी को हजम हो न हो वरना //गया....,चला गया  कितना अच्छा हुआ //  :)))  हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 12:52am
बहुत बहुत धन्यवाद आ o गोपाल नरायन जी , सादर .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2014 at 12:47pm

आदरणीय

कम् शब्दों  में सारगर्भित कहने हेतु बधाई i

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