221 2121 1221 212
ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ
हर गाम एक किस्सा रवाँ छोड़ आया हूँ
वो रोज़ था, मुझे न मयस्सर ज़मीं हुई
ये हाल है कि अब मैं जहाँ छोड़ आया हूँ
परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह
बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ
उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त
जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ दयार= मकान
मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते
चलते हुये उन्हें मैं कहाँ छोड़ आया हूँ
दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर
मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ अमाँ= सुरक्षा
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते
चलते हुये उन्हें मैं कहाँ छोड़ आया हूँ.............बहुत खूब, बेहद खूबसूरत शेर
दिली बधाइयाँ आपको आदरणीय शिज्जु जी
प्रिय शिज्जु भाई, ग़ज़ल अच्छी लगी, इन दो अशआर को मैं कोट करना चाहूंगा जो मुझे बहुत पसंद आयें,
परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह
बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ
मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते
चलते हुये उन्हें मैं कहाँ छोड़ आया हूँ
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर आदरणीय
परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह
बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ------बहुत बढ़िया
उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त
जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ -
दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर
मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई शिज्जू भाई
परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह
बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ------बहुत सुन्दर दिल छू गया ये शेर
उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त
जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ ------शानदार
बहुत- बहुत बधाई आपको
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