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प्रोषितपतिका  मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही  थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला  -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i'  इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की  और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की  माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i  माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर  लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 11:11am

आदरनीय  बागी जी

 श्रीमन आपने पहली बार  र्मेरी रचना पर आने का अनुग्रह किया और  रचना को  मान  दिया  i मै तो इतना ही कहूँगा - वो आये लघु कथा पर मेरी खुदा की कुदरत है i कभी हम उनको कभी अपनी फटीचर कथा  को देखते है i  आदरणीय आपका प्रोत्साहन सर आँखों पर i  ससम्मान i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 11:02am

आदरणीय विजय शंकर जी

आपका आभार प्रकट करता हूँ  i सादर  i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 29, 2014 at 8:27pm

लघुकथा के माध्यम से एक भावनात्मक पक्ष को आपने छुआ है, बधाई आदरणीय गोपाल नारायण जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 6:11pm
खूब होता है ऐसा । रोचक आदरणीय गोपाल नरायन जी , सजीव लगी लघु कथा ।

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