प्रोषितपतिका मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i' इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i
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आदरनीय बागी जी
श्रीमन आपने पहली बार र्मेरी रचना पर आने का अनुग्रह किया और रचना को मान दिया i मै तो इतना ही कहूँगा - वो आये लघु कथा पर मेरी खुदा की कुदरत है i कभी हम उनको कभी अपनी फटीचर कथा को देखते है i आदरणीय आपका प्रोत्साहन सर आँखों पर i ससम्मान i
आदरणीय विजय शंकर जी
आपका आभार प्रकट करता हूँ i सादर i
लघुकथा के माध्यम से एक भावनात्मक पक्ष को आपने छुआ है, बधाई आदरणीय गोपाल नारायण जी।
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