1222 1222 1222 1222
जुबाँ से विष उगलते और मन में नफरतें होतीं
न तू होता अगर दिल में न तेरी रहमतें होतीं
नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल
न कोई ख़्वाब ही पलते न कोई हसरतें होतीं
जो तेरे हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे
कहाँ से होंसला होता कहाँ ये हिम्मतें होतीं
बिना मतलब यहाँ तो पेड़ से पत्ता नहीं हिलता
ज़माना साथ क्या देता बड़ी ही जिल्लतें होतीं
न तुझ में आस्था होती न तेरा डर अगर होता
कहाँ होती मुहब्बत और कैसी कुर्बतें होतीं
बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने
नहीं तो बंट चुका होता लगा दी कीमतें होतीं
तेरी पाकीजगी, कमसिन ज़िया को लूट लेते सब
सितारों चाँद सूरज की दरकती अस्मतें होतीं
कज़ा की डोर हाथों में नहीं लेता अगर मालिक
अमर होती कहर ढ़ाती विषैली ताकतें होतीं
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
ब्रिजेश भैय्या ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |
शिज्जू भाई, ग़ज़ल पर जब कोई सुलझा हुआ ग़ज़लकार प्रतिक्रिया देता है तो उसके मायने बहुत ख़ास होते हैं ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर मैं संतुष्ट हो रही हूँ कि अशआर अपने स्पष्ट प्रभाव छोड़ सके हैं ,तहे दिल से आभारी हूँ
आदरणीया राजेश दीदी वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी मगर इन अशआर ने तो कमाल कर दिया बहुत बढ़िया दिली दाद कुबूल फरमाएँ।
नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल
न कोई ख़्वाब ही पलते न कोई हसरतें होतीं
जो तेरे हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे
कहाँ से होंसला होता कहाँ ये हिम्मतें होतीं
बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने
नहीं तो बंट चुका होता लगा दी कीमतें होतीं
आ० गिरिराज जी,ग़ज़ल को आप जैसे गंभीर सुलझे हुए ग़ज़ल कार का आशीष प्राप्त हुआ और क्या चाहिए|ह्रदय तल से आभार आपका|
आदरनीया राजेश जी , बेहद खूबसूरत , कामयाब गज़ल कही आपने , हर शे र अपने आप मे पूरा है , जो आपने पहुँचाना चाहा सीधे दिल तक पहुँचा ॥ हर एक अशआर के लिये ढेरों दाद कुबूल कीजिये ॥
आ० नीलेश जी ,आप जैसे सुलझे हुए ग़ज़ल कार से सराहना पाना ग़ज़ल को सार्थक बनाने के साथ आश्वस्त होने का कारण भी बनता है ,आपकी प्रतिक्रिया तहे दिल से स्वीकार और बहुत- बहुत आभार.
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ..हर शेर दुसरे से बढ़कर है ..
बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए ..
आ० एडमिन जी, ग़ज़ल को फीचर करने हेतु दिल से लख- लख आभार|
आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल आपकी उपस्थिति और सराहना सिक्त प्रतिक्रिया से धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online