मन की...
तपती धरा पर
कुछ बूंदें ही बारिश की
यूँ पड़ी..
न कोई राहत ,न ही सौंधी सी महक
सिर्फ बेचैनी और उमस
कहीं संवेदनाओं की मिट्टी
पत्थर तो नहीं हो गई
या वर्ष भर के
लम्बे विरह से
मिलन की ,भूख-प्यास चाहती हो
खूब टूट-टूट कर
बरसें ये बादल
हाँ..! यही सच है
शायद..
मन भी यही चाहता है.
जितेन्द्र’गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है आदरणीया डा.प्राची जी, आपकी उपस्थिति बहुत मनोबल प्रदान करती है, आपका ह्रदय से आभार.
सादर!
प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई आ० जितेन्द्र जी
रचना पर आपकी उपस्थति से बहुत मनोबल मिलता है आदरणीय सौरभ जी, आपका ह्रदय से आभार
सादर!
बहुत ही सफल प्रयास हुआ है, भाई जितेन्द्र जी.
शुभ-शुभ
रचना पर आपके अनुमोदन से रचना सार्थक हुई आदरणीय विजय जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपके भाव पन्ने पर अच्छे उतरे हैं। भावप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
........इस भावप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई आ0 भाई जितेन्द्र जी ।
रचना पर आपकी उपस्थिति से मन को बहुत संतोष मिलता है आदरणीय बृजेश जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
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