For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम क्यों खोजते है
सच को
बार बार?
कस्तूरी के
मृग की तरह
वो तो सदा
हमारे बीच
ही रहता है.
हम उसे रोज
देखते है
सुनते हैं
सूंघते हैं
पर अंजान बन
उंघते है.
अगर हमने
मान लिया
हम सच जानते है
तो लोग हमें
झूठा कहेंगे
क्योंकि वो भी

कस्तूरी गंध के
सच को जानते है.

विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 10, 2014 at 2:24pm

भाव से एकात्म के लिए बहुत आभार आ० प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 2:02pm

प्रेम कसूरी उर बसे...वन उपवन मत भाग 

मृग दृग अन्तः ओर कर ...महक उठेंगे भाग 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय विजय जी 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 8, 2014 at 8:22am

आ० सौरभ पाण्डेय जी, मार्गदर्शन के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 5:50pm

इस विचार समृद्ध रचना के लिए हृदय से बधाई आदरणीय. बहुत ही सधी हुई भाषा में आपने बहुत ही जटिल तथ्य को प्रस्तुत किया है.

टंकण त्रुटियों के प्रति संवेदनशील होना रचना की संप्रेषणीयता के विन्दुवत होने का कारण हुआ करता है, आदरणीय.

सादर

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 9:23pm

आ० विजय निकोर जी,
अभिनन्दन.
इस स्नेहसिक्त सराहना के लिए कोटि-कोटि आभार.

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 4:10pm

असली सत्य, परम सत्य, एक ही है, दो नहीं हो सकते।

चिंतनप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 11:00am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी,
इस पोस्ट पर आकर रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत अभिनन्दन.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:56am

आदरणीय जित्तेन्द्र जी,
सराहना के लिए आपका बहुत आभार.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:54am

आदरणीय गिरिराज भाई,
प्रस्तुत रचना की इस सप्रसंग व्याख्या के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 10:29am

आदरणीय , सच असल मे तलाशता ही कौन है , हम सब तलाशते हैं सहुलियत से प्राप्त होने वाली खुशियाँ । जो जिस सीमा तक  अपने अन्दर के सच को जानता है बाहर की सहुलियत से प्राप्त होने वाली नकली खुशियों से उसी सीमा तक दूर हो जाता है । खुद को खोदना आसान काम नही है , खुद का सच सरलता से पाया नही जाता । बस यही चल रहा है ! चिंतन के लिये बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service