For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम क्यों खोजते है
सच को
बार बार?
कस्तूरी के
मृग की तरह
वो तो सदा
हमारे बीच
ही रहता है.
हम उसे रोज
देखते है
सुनते हैं
सूंघते हैं
पर अंजान बन
उंघते है.
अगर हमने
मान लिया
हम सच जानते है
तो लोग हमें
झूठा कहेंगे
क्योंकि वो भी

कस्तूरी गंध के
सच को जानते है.

विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 10, 2014 at 2:24pm

भाव से एकात्म के लिए बहुत आभार आ० प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 2:02pm

प्रेम कसूरी उर बसे...वन उपवन मत भाग 

मृग दृग अन्तः ओर कर ...महक उठेंगे भाग 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय विजय जी 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 8, 2014 at 8:22am

आ० सौरभ पाण्डेय जी, मार्गदर्शन के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 5:50pm

इस विचार समृद्ध रचना के लिए हृदय से बधाई आदरणीय. बहुत ही सधी हुई भाषा में आपने बहुत ही जटिल तथ्य को प्रस्तुत किया है.

टंकण त्रुटियों के प्रति संवेदनशील होना रचना की संप्रेषणीयता के विन्दुवत होने का कारण हुआ करता है, आदरणीय.

सादर

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 9:23pm

आ० विजय निकोर जी,
अभिनन्दन.
इस स्नेहसिक्त सराहना के लिए कोटि-कोटि आभार.

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 4:10pm

असली सत्य, परम सत्य, एक ही है, दो नहीं हो सकते।

चिंतनप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 11:00am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी,
इस पोस्ट पर आकर रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत अभिनन्दन.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:56am

आदरणीय जित्तेन्द्र जी,
सराहना के लिए आपका बहुत आभार.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:54am

आदरणीय गिरिराज भाई,
प्रस्तुत रचना की इस सप्रसंग व्याख्या के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 10:29am

आदरणीय , सच असल मे तलाशता ही कौन है , हम सब तलाशते हैं सहुलियत से प्राप्त होने वाली खुशियाँ । जो जिस सीमा तक  अपने अन्दर के सच को जानता है बाहर की सहुलियत से प्राप्त होने वाली नकली खुशियों से उसी सीमा तक दूर हो जाता है । खुद को खोदना आसान काम नही है , खुद का सच सरलता से पाया नही जाता । बस यही चल रहा है ! चिंतन के लिये बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
20 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service