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हम क्यों खोजते है
सच को
बार बार?
कस्तूरी के
मृग की तरह
वो तो सदा
हमारे बीच
ही रहता है.
हम उसे रोज
देखते है
सुनते हैं
सूंघते हैं
पर अंजान बन
उंघते है.
अगर हमने
मान लिया
हम सच जानते है
तो लोग हमें
झूठा कहेंगे
क्योंकि वो भी

कस्तूरी गंध के
सच को जानते है.

विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 864

Comment

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 10, 2014 at 2:24pm

भाव से एकात्म के लिए बहुत आभार आ० प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 2:02pm

प्रेम कसूरी उर बसे...वन उपवन मत भाग 

मृग दृग अन्तः ओर कर ...महक उठेंगे भाग 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय विजय जी 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 8, 2014 at 8:22am

आ० सौरभ पाण्डेय जी, मार्गदर्शन के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 5:50pm

इस विचार समृद्ध रचना के लिए हृदय से बधाई आदरणीय. बहुत ही सधी हुई भाषा में आपने बहुत ही जटिल तथ्य को प्रस्तुत किया है.

टंकण त्रुटियों के प्रति संवेदनशील होना रचना की संप्रेषणीयता के विन्दुवत होने का कारण हुआ करता है, आदरणीय.

सादर

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 9:23pm

आ० विजय निकोर जी,
अभिनन्दन.
इस स्नेहसिक्त सराहना के लिए कोटि-कोटि आभार.

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 4:10pm

असली सत्य, परम सत्य, एक ही है, दो नहीं हो सकते।

चिंतनप्रधान रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 11:00am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी,
इस पोस्ट पर आकर रचना की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत अभिनन्दन.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:56am

आदरणीय जित्तेन्द्र जी,
सराहना के लिए आपका बहुत आभार.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 10:54am

आदरणीय गिरिराज भाई,
प्रस्तुत रचना की इस सप्रसंग व्याख्या के लिए आपका बहुत-बहुत आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 10:29am

आदरणीय , सच असल मे तलाशता ही कौन है , हम सब तलाशते हैं सहुलियत से प्राप्त होने वाली खुशियाँ । जो जिस सीमा तक  अपने अन्दर के सच को जानता है बाहर की सहुलियत से प्राप्त होने वाली नकली खुशियों से उसी सीमा तक दूर हो जाता है । खुद को खोदना आसान काम नही है , खुद का सच सरलता से पाया नही जाता । बस यही चल रहा है ! चिंतन के लिये बधाइयाँ ॥

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