मन के भावो को
कल्पना की कलम से
कोरे कागज़ पर
उतारता हूँ.
शब्दों की आड़ में,
चिंता के झाड़ से
बचाई "संवेदना" को
संवारता हूँ,
कागज की नाव पर
सपनो के सागर में
सच की पतवार लिए
हिलकोरे खाता हूँ.
डूबना -उतराना तो
खेल है जीवन का
जाने क्या आश लिए
क्षितिज तक जाता हूँ.
विजय प्रकाश शर्मा.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० सौरभ पाण्डेय जी, मार्गदर्शन के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद
उत्त्म ! अति उत्तम !!
सादर धन्यवाद आदरणीय. .
शब्दों के आड़ में = शब्दों की आड़ में
आश = आस
सादर
धन्यवाद सह आभार आ० रमेश कुमार चौहान जी.
बहुत खूबसूरत बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
सराहना के शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रियंका" पियु" जी.
शब्दों के आड़ में,
चिंता के झाड़ से
बचाई "संवेदना" को
संवारता हूँ,......बहुत खूब सर .... बधाई आपको
आ० शिज्जु शकूर जी, जितेन्द्र 'गीत जी, विजय निकोर जी, सविता मिश्रा जी, तथा लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाल जी,
आप सबों ने उत्साह वर्धन किया है . कोटिश : धन्यवाद सह आभार. यही उत्साह लेकर तो क्षितिज तक जाना चाहता हूँ.पुनः आभार
मन के भावों को बहुत ही सुंदर सहज शब्द मिले, बधाई आदरणीय विजय जी
आपकी रचना पढ़ कर आनन्द आया। हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।
बहुत खूबसूरत
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