सच-झूठ,दिन-रात
बनाते रहते हैं लोग.
औरत और आदमी को
अलगाते रहते हैं लोग.
हर रोज जीवन को
उलझाते रहते है लोग.
कभी बनाते है भोग्या
तो कभी चढ़ाते हैं भोग.
नर-नारीपूरक हैं,
नही समझ पाते लोग.
दोनो का सम- भाव हो
कब आएगा यह संजोग?
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ० विजय शॅंकर जी, आपने इस कविता के भावों की व्याख्या कर दी. आपका बहुत -बहुत अभिनंदन."
आ० जवाहर लाल जी,
रचना आपको पसंद आई, इसकी पंक्तियाँ भाईं . आपका बहुत- बहुत आभार.
नर-नारीपूरक हैं,
नही समझ पाते लोग.
दोनो का सम- भाव हो
कब आएगा यह संजोग?
चिंतन जारी रहन चहिये
आ० गिरिराज भाई,
आपकी सराहना मिली, मैं धन्य हुआ. अभिनंदन.
आदरनीय विजय भाई , सच कहा आपने इंसान यातो इस अति पर जीता है या उस अति पर , संतुलन मे कभी आ नही पाता । आपको इस चिंतन के लिये बधाई ॥
आ० लक्ष्मण धामी जी. आपने सही कहा है- जबतक दोनो नही समझेंगे.
समझने का कIम तो चलते रहना चाहिए. आपका आभार.
आदरणीय भाई विजय प्रकाश जी आपने सत्य कहा है कि नर और नारी एक दूसरे के पूरक हैं । पर हकीकत तो यह है िकइस कटु सत्य को स्चयं नरनारी नहीं समझ पाये हैं । आपने एक प्रश्न उठाया है कि दानों का समभाव होने का संयोग कब आयेगा तो उस बारे यही कहा जा सकता है कि जब स्वयं नर नारी इसकी प्राथमिकता को समझते हुए आगे बढ़ेगे ।
रचना की सराहना के लिए बहुत-बहुत आभार आ० कुंती जी.
बहुत सुंदर रचना....हार्दिक बधाई.
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