क्यों घूंघट में है सच?
क्योंकि तुमने प्रयास नहीं किया
कभी इस और ध्यान नहीं दिया.
उलझे रहे जीवन के उहापोह में
परायों के दोष अपनों के मोह में.
अगर तुमने हिम्मत दिखाई होती
कभी अपनी अंतरात्मा जगाई होती.
देखा होता उठाकर तुमने घूंघट,
ख़ुशी भरा होता आँगन खचाखच.
डॉ.विजय प्रकाश शर्मा.
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय शर्मा जी,
मेरे कहे को आपने मान दिया और मेरे इंगित पर अपनी बात रखी... इस सहयोग के लिए हार्दिक आभार
मेरा सिर्फ इतना ही कहना है...की कोइ भी सजग पाठक रचना को शब्दशः ही पढता है और भाव को ग्रहण करने का प्रयास करता है... और जिस पाठक को सरसरी निगाह से बिना चिंतन मनन किये अभिव्यक्तियों से गुज़रना है वो शाब्दिकता की ही वाह वाह कर निकल जाते हैं बिना चिंतन मनन किये...
वैसे आपके सोचने का अपना आधार है जो कुछ हद तक आम पाठक जन की दृष्टि से शायद उचित भी है...
सादर
आ० प्राची जी,
पहले मैं आपका अभिनंदन करता हूँ,आपने इतनी बारीकी से रचना को देखा.
वैसे इसे पुन्रक्ति दोष माना जाता है परंतु मेरी सोंच थोड़ी अलग है. किसी महत्वपूर्ण प्रश्न को एक बार पूछने पर पाठक ध्यान ना दे कर अपने रवो में आगे बढ़ जाता है. बात के ख़त्म होने पर अगर प्रश्न को फिर खड़ा कर दिया जाए तो वो थोड़ी देर ठहर कर अवश्य चिंतन करेगा,यही प्रश्न की सार्थकता का क्षण होगा, बस यही समझ इसके पीछे है.
क्यों घूंघट में है सच?
बहुत सार्थक प्रश्न और इसका ज़वाब भी देती सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति..
अंत में पुनः "क्यों घूंघट में है सच?" पंक्ति की पुनरावृत्ति की आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती.... क्योंकि यहाँ तक पहुँचते पहुँचते तो प्रश्न उत्तरित हो ही चुका है..... .... आपकी सहमती/असहमति जाना रोचक होगा !
सादर.
आभार -आ ० महिमा श्री,आ० शकूर जी, आ० सुशील सरन जी एवं आ० जवाहर जी . आप सबों ने सहारा,अहोभाग्य.
वाह बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय विजय प्रकाश शर्मा सर बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
उलझे रहे जीवन के उहापोह में
परायों के दोष अपनों के मोह में.
अंतर्द्वंद्व को उकेरती सुन्दर रचना , बधाई!
अंतर्द्वंद को दर्शाती सुंदर रचना .... हार्दिक बधाई आदरणीय
Dr. Vijai Shanker jee,
Coincidences are due to psychic unity of mankind. Many many thanks for your appreciation.
बहुत खूब आदरणीय हार्दिक बधाई आपको सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online