अंतःकरण की शुद्धि
सुबह में , शाम में,
वर्षा और घाम में,
जीवन के साम-दाम में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
देवता के पूजन में ,
मन्त्रों के गुंजन में,
सज्जन और दुर्जन में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
राग-वैराग्य में,
स्वार्थ और त्याग में ,
जीवन सौभाग्य में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
दुःख में क्लेश में
किसी भी वेश में ,
दुर्भाग्य और भाग्य में,
अंतःकरण की शुद्धि चाहिए,
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० सौरभ पाण्डेय जी,
अपने इस कमजोर रचना के लिए खेद है परन्तु ख़ुशी इस बात की है की इस कारण ही आपका मार्गदर्शन पाने का अवसर मिला.
आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार.कोशिश करूंगा प्रस्तुति दुरुस्त हो. सादर.
आपकी कई रचनाओं से गुजरने का सौभाग्य मिला है आदरणीय विजय प्रकाशजी. आपकी छोटी मगर धारदार अभिव्यक्तियाँ सहज ही प्रभावित करती रही हैं. और सच कहूँ तो इसीकारण आपकी रचनाओं का इंतज़ार भी रहता है. उस हिसाब से आपकी अबतक की सबसे कमज़ोर प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. ऐसा नहीं कि इस रचना ने पाठक के तौर पर मेरा ध्यान नहीं खींचा है.
सादर
बहुत-बहुत आभार आ० प्राची जी.
नित्य अन्तः प्रक्षालन ही चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित कर मन वचन कर्म बुद्धि अहं को संतुलित रखता है... अन्तः करण की शुद्धि को दरकिनार कर आज व्याप्तता जाता अनैतिक आचरण ही तो सारी समस्याओं का मूल कारण है
शुद्ध अन्तः करण ही पूरी पारदर्शिता के साथ हर परिस्थिति में हर सत्य को पहचान सकता है
इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई स्वीकारिये आ० विजय प्रकाश शर्मा जी
रचना के भाव सराहनीय हैं। बधाई, आदरणीय विजय जी।
आ० भाई गिरिराज भंडारी जी,आपके सराहना के शब्द तो रचना को नया आयाम दे डालते हैं.आपका सदैव आभारी.
विजयप्रकाश.
आदरणीय विजय प्रकाश भाई , सत्य वचन , सही सलाह , ये हो जाये तो सब कुछ सँवर जाये । बधाइयाँ ।
आ ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप के उदगार इस रचना से उद्वेलित हुए.आपका आभार .
दस्यु को महाकवि में बदल दिया है-मात्र एक घटना ने -यत्क्रौंच मिथुनादेकम्-------
अंगुलिमाल की कथा भी सामने है." मरा" से "राम" में बदलने में वक़्त नहीं लगता.
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दुर्जन का अंतःकरण शुद्ध हो जाये तो सारा विश्व समरस हो जायेगा i काश !
आपका निरंतर मेरे रचनाओं को सराहना मुझे संजीवनी देता है. हार्दिक अभिनन्दन जीतेन्द्र जी.
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