स्वप्न
पावस-अमावस में, निविड़ में बीहड़ में
साहस की मूर्ति बनी कृष्ण अभिसारिका I
नीर नेत्र-नीरज में धर्म वृत्ति धीरज में
श्रृद्धा भक्ति भाव भरी आयी सुकुमारिका I
देखा प्रिय पंथ में खड़े है अड़े भासमान
धाय गिरी अंक मे अधीर हुयी चारिका I
चौंकि उठी उसी क्षण स्वप्न सुख भंग हुआ
हाय ! कहाँ कान्ह वे तो जाय बसे द्वारिका I
मुक्ति-चतुष्टय
(भारतीय दर्शन में चार प्रकार की मुक्ति मानी गयी है -
सामीप्य, सारूप्य, सालोक्य, सायुज्य )
वैभव समाज छोड़, लोक रीति लाज छोड़
चली काम-काज छोड़ अभिसार करने I
कुञ्ज की उजाली देख प्रीतम प्रभाली देख
लगी रोष -लाली देख मनुहार करने I
प्रेयसि का चन्द्र -मुख, प्रिय का सनेह सुख
क्या ही रस वाद लगा झार-झार झरने I
स्वामि ने स्वरुप दिया लोक अपरूप दिया
सुखद सामीप्य दिया, सामरस्य सरने I
[अप्रकाशित एवं मौलिक ]
Comment
बहुत खुबसुरत
अति सुन्दर ..सादर बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online