सन १९८३ मार्च या अप्रेल का महीना हम कुछ परिवार मिलकर विशाखापत्तनम के ऋषिकोंडा बीच पर पिकनिक मनाने गए | उस वक़्त मेरे पति भारतीय नौसेना में अधिकारी थे अतः मित्र परिवार भी नेवी वाले ही थे|बीच पर पंहुचते ही अचानक तेज बारिश होने लगी|मेरे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे अतः उनको भीगने से बचाने के लिए जगह खोजने लगे |
बीच के किनारे पर मछुआरों की बस्ती थी उन्होंने हमारी परेशानी समझी और हमे अपनी झोंपड़ियों में बिठाया| मछली की बू सहन भी नहीं हो रही थी किन्तु मजबूरी थी फिर उन्होंने कहीं से दूध का इंतजाम करके गर्म गर्म चाय भी परोस दी हम उनकी आव भगत से अभिभूत हो गए थे|
कुछ देर बाद बारिश रुक गई और हम उन लोगों को कुछ पैसे जबरदस्ती देकर लहरों से अठखेलियाँ करने दौड़ पड़े |वहीँ एक मछुआरन किनारे पर बच्चों को लेकर बैठ गई|हमारे ग्रुप में एक दो डाइवर भी थे जो अपने करतब भी दिखा रहे थे|और हम महिलाओं का ग्रुप भी पूरी मस्ती में था एक दूसरे पर पानी उछालना लहरों के साथ बहना फिर वापस आना चल रहा था|
इतने में अचानक एक हेलिकोप्टर की आवाज आई हम सब की नजरें आसमान की और उठ गई हेलिकोप्टर को हम बच्चों की तरह बाय- बाय करने लगे| हमारे एक दो साथी हेलीकाप्टर के पायलेट ,को पायलेट को पहचान गए उसके जाने के बाद लगभग पांच मिनट बाद दूसरा हेलिकोप्टर आया हमने फिर उसे भी हाथ हिलाकर वेव किया|
वो भी हमे पहचान गए| एक राउंड में तो उन्होंने एक हेलिकोप्टर हमारे सिरों से थोड़ी ऊँचाई पर ही हाल्ट कर दिया जिसकी भयंकर आवाज और तेज हवा से हम और रोमांचित हो गए ,पानी, रेत भी उनकी तरफ उछालने लग गए |
मेरे पति ने बताया की उनकी एक्सरसाईज चल रही है |कई बार वो इतने नीचे आये की हम उनकी सूरत भी आराम से देख रहे थे |वो बहुत हँस रहे थे हमारी ओर हवाई किस भी फेंक रहे थे और हमारें ग्रुप के पुरुष उनको थप्पड़ दिखा रहे थे ये मस्ती लगभग बीस मिनट तक चलती रही एक हेलिकोप्टर के जाने के बाद हम दूसरे की इन्तजार में आँखें आकाश की और लगा लेते |
फिर अचानक वो आने बंद हो गए कुछ देर इन्तजार करके हम भी बाहर निकल आये|और दस पंद्रह मिनट बाद हम रोड पर आ गए थोड़ी दूर ही चले थे की कुछ आदमी बदहवास से दौड़े आ रहे थे हमने गाडी रोक कर पूछ क्या हुआ तब उन्होंने बताया कि कुछ ही दूरी पर दो
हेलिकोप्टर आपस में टकरा गए और समुद्र में गिर गए |सुनते ही हम सब लोग सन्न रह गए और सब घटना स्थल पर भागे|
सात जवानों में से एक भी नहीं बचा इतना ह्रदय विदारक द्रश्य था चारों और नेवी के लोग फैले थे समुद्र में सैंकड़ों बोट घरघराकर दौड़ रही थी, किसी चश्मदीद ने बताया की दो जवान तो गिरते हुए हेलिकोप्टर से कूदने की कोशिश किये जो उसके ब्लेड से टुकड़ों में कट-कट के गिरे|हम सब मायूस आँखों में आँसू लिए घर लौटे |रात भर क्या कई दिनों तक ठीक से सो न सके |
बाद में आखबार में खबर छपी की किसी टेक्नीकल खराबी के कारण ये हादसा हुआ| हमे सख्त हिदायत दी गई कि हम सब अपना मुँह बंद रखें|आज इस घटना को इतने साल बीत गए हैं किन्तु इसकी याद आज भी उसी तरह मन में ताजा है सिहर जाती हूँ जब ये घटना याद आती है|
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जी आ० सौरभ जी,आपने सही कहा साहस जब दुस्साहस बन जाए ....और युवाओं में इसकी कमी नहीं चाहे वो बाइक चलाने की ही बात हो ...उस वक़्त हम भी बहुत ना समझ थे परिणाम से अनभिग्य थे उनको इग्नोर करते तो शायद ये ना होता ,पर जो होनी को मंजूर होता है वो होता है |वो चेतक ही थे और विक्रांत शिप से एक्सरसाईज चल रही थी अम्बा से नहीं|
साहस जब दुस्साहस बन जाये, चाहे किसी रौ में बह कर, तो ज़िन्दग़ी घबरा कर भागने लगती है. ज़िन्दग़ी का भागना उचित नहीं होता.
आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपके संस्मरण ने कई अनकहे तारों को एक साथ तान दिया है जिनसे जागरुकता की झंकार साफ सुनायी दे रही है. काश यह झंकार तब भी उठी होती और उनको सुनायी देती जो असमय ही काल-कलवित हो गये.
आपके संस्मरण के प्रति सादर आभार
आ० शरदिंदु मुखर्जी जी ,आप सही कहते हैं कुछ ऐसी घटनाए होती हैं जिनको सहज साझा नहीं किया जा सकता,उस वक़्त अम्बा शिप वहां था शायद उसी से उड़ान भर रहे थे |
आदरणीया,
मैं आपकी मनोदशा समझ सकता हूँ. मैं भी कुछ ऐसी घटनाओं का साक्षी हूँ जिन्हें सहज ही साझा नहीं किया जा सकता विभिन्न कारणों से. एक समय के अंतराल के बाद ही हम उन्हें सबको बता सकते हैं. बहरहाल जिस हादसे की बात आपने की है उससे दु:ख हुआ. क्या वे "चेतक" हेलिकॉप्टर थे?
आ० डॉ आशुतोष जी ,आपका शुक्रिया ...
प्रिय अरुण ,वक्त जब बुरा आता है कह कर नहीं आता | ये घटना आप सब से साझा करके खुद को हल्का महसूस कर रही हूँ |
आदरणीया राजेश जी ...आपने शब्दों के माध्यम से घटना का कुछ इस तरह चित्रण किया है की पढ़कर आँखें नम हो गयी ,,,ऐसा लगा जैस घटना हमारे सामने हुई हो ...दिल को हिला देने वाली रचना .आपकी शिल्प को तो नमन पर उन जवानो को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ ...सादर
उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ आदरणीया माँ जी ऐसी दर्द नाक घटनाएँ सुनकर ही आँखें नम हो जाती हैं कुछ देर के लिए तो ह्रदय मानो शांत हो गया हो. एक क्षण में कितना कुछ बदल जाता है. सभी शहीदों को सादर नमन.
जी आ० गिरिराज जी, सच कहा ये कभी न भूलने वाली घटना थी ,इसको पोस्ट करने से पहले बहुत सोचा फिर अपने पतिदेव की इजाजत भी लेनी पड़ी|
आदरणीया राजेश जी , सच मे एक बहुत ही दुखद घटना है , आखों देखी है तो भूलना सच मे मुश्किल है ॥ इसके लिये बधाई नही लिख सकता !
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