For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

झुकी उस डाल में हमको कई चीखें सुनाई दें (ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२   १२२२   १२२२ 

तुम्हारे पाँव से कुचले हुए गुंचे दुहाई दें

फ़सुर्दा घास की आहें हमें अक्सर सुनाई दें

 

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार दिखता है

हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें

 

तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से तोड़ते कलियाँ

झुकी उस डाल में  हमको कई चीखें सुनाई दें

 

न कोई दर्द होता है लहू को देख कर तुमको  

तुम्हें आती हँसी जब सिसकियाँ  भर- भर दुहाई दें 

कहाँ महफ़ूज़ वो माँ दूध से जिसने हमे पाला

झुका देती जबीं अपनी सजाएँ जब कसाई दें

 

उड़े कैसे भला तितली लगे हैं घात में शातिर

खुदा की रहमतें ही बस उन्हें अब तो रिहाई दें 

 

करें फ़रियाद कब किससे जहाँ में कौन है किसका

सितम गर रूहें , खुद रब की अदालत में सफ़ाई दें

 

फ़सुर्दा =मुरझाई हुई

महफ़ूज़ =सुरक्षित

जबीं =माथा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 905

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:42am

मिथिलेश जी,आपकी सराहना पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,ये ग़ज़ल रोज के अखबरात की सुर्ख़ियों के भावावेश का परिणाम है ..............हर हर्फ़ में गुंथा था दर्द किसी का लोगों के लिए वो इक ग़ज़ल बन गई ........

बहुत बहुत सुक्रिया मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 12:49am

क्या बात है क्या उम्दा शेर कहा है -

करें फ़रियाद कब किससे जहाँ में कौन है किसका

सितम गर रूहें , खुद रब की अदालत में सफ़ाई दें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 12:47am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ..बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम पर आपकी गज़ब की कमांड है .... बात होते होते क्या उम्दा शेर निकलते है कि बस झूम जाए ....पूरी ग़ज़ल उम्दा है ..... नमन इस लेखनी को ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2014 at 5:25pm

आ० सौरभ जी ,आज दो दिन बाद नेट आया तो ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और समीक्षा देखकर प्रसन्नता हुई |जी आपका कहना सही है कभी कभी सोच और कहन के दरमियाँ फांसला होता है  कुछ संशोधन तो करने पड़े हैं किन्तु अब मैं आश्वस्त हूँ की अशआर स्पष्ट अपनी बात रखने में सफल हैं |आपका हार्दिक आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 6:30pm

इस ग़ज़ल पर आते-आते देर हुई है. लेकिन जिस तरह से चर्चा हुई है, उससे मन आश्वस्त है कि सोच और कहन के बीच थोड़ा फ़ासला जरूर था.
इस ग़ज़ल के कई-कई शेर और समय चाहते थे, आदरणीया राजेशजी. आपकी ग़ज़लों को अब पकना जरूरी है. तनिक भी समय मिले शेर पकना शुरू कर देंगे.
फिर पाठक मुत्मईन न हों हो ही नहीं सकता.
बहरहाल, इस प्रस्तुति के लिए सादर अभिनन्दन.
शुभ-शुभ
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2014 at 8:50pm

आ० कल्पना दी ,ग़ज़ल को आपका आशीष मिला ग़ज़ल धन्य हुई ,इस अनुमोदन के लिए दिली आभार स्वीकारें |

Comment by कल्पना रामानी on July 10, 2014 at 7:15pm

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार है दिखता

हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें

 

तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से नोंचते कलियाँ

झुकी उस डाल में  हमको कई चीखें सुनाई दें...

तन-मन को झकझोरने वाले शेर कहे हैं प्रिय राजेश जी, मन से बधाई स्वीकार कीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2014 at 10:05am

जितेन्द्र भैय्या,आपको ग़ज़ल के भाव प्रभावित किये ,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी तहे दिल से शुक्रिया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ |शुभ कामनाएँ| 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 10, 2014 at 9:59am

न कोई दर्द होता है लहू को देख कर तुमको  

तुम्हें आती हँसी जब सिसकियाँ  भर- भर दुहाई दें............बहुत खूब शेर, मन को झंझोड़ देता है 

करें फ़रियाद कब किससे जहाँ में कौन है किसका

सितम गर रूह, खुद रब की अदालत में सफ़ाई दें.............बहुत सुंदर, किन्तु आजकल रूह को रब से मिलने का वक्त ही नही है

बहुत ही उम्दा गजल कही है आपने आदरणीया राजेश दीदी. हर एक शेर एक साफ़ आईने की तरह, आपको को तहे दिल से बधाई

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2014 at 9:34am

विनय कुमार सिंह जी ,आपको ग़ज़ल पसंद तहे दिल से आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service