सपनो का गाँव,
 पीपल की छावो,
 नदी का वह तट ,
 नहाती जहाँ झट -पट 
 किनारे के लोग कभी 
 नहीं देखते थे एकटक .
 बदल गए वो भाव 
 बदल गया गाँव,
 झूमर औ गीत गए 
 रिश्ते अब रीत गए 
 लक्ष्मी जब भाग गई 
 आँखों की लाज गई 
 अब दीदे हुए बेशर्म 
 गाँव का माहौल गर्म
 आतंक, भूख , भय 
 राजनीती देती प्रश्रय 
 सुख गए अब खेत,
 माटी बन गई रेत,
 भागे सब शहर को 
 कौन करे अब सेत.
 पसर रहा है मौन 
 जिम्मेवार है कौन?
 विजय प्रकाश शर्मा 
 मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० रवि प्रभाकर जी,आपने साराह कर मान दिया ,आभार सह अभिनन्दन.
प्रिय पारुल 'पंखुरी ' ,आपको रचना अर्थपूर्ण लगी ,आपने साराह कर मान दिया ,आभार सह धन्यवाद.
 सेत=संरक्षण .यथा:मुर्गी अंडे "सेती" है.
अर्थपूर्ण रचना सेत का अर्थ नहीं समझी आदरणीय कृपया बताने का कष्ट करें
आदरणीय विजय प्रकाश शर्मा जी
नहाती जहाँ झट -पट
किनारे के लोग कभी
नहीं देखते थे एकटक .
बदलते परिवेश का स्टीक चित्रण।
बहुत उत्कृष्ट रचना। बधाई स्वीकार करें। सादर ।
शर्मा जी
अहो निष्ठुर परिवर्तन i
अजब है तेरा नर्तन i
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