बहुत रोया मैं,
पड़ोसी चाची के मर जाने पर
गाँव से शहर जाने पर
हाल के दंगे में
आग देखकर
डर जाने पर
खुद को लूटा के
घर जाने पर
आंसुओं ने साथ छोड़ दिया
नहीं रोया मैं,
माँ के मर जाने पर,
वो
हर सहर के साथ
हॅसते देखना चाहती थी.
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ० आशुतोष जी,
आपकी सराहना पाकर मैं कृतज्ञ हूँ.
आदरणीय शर्मा जी ..आपकी यह रचना तो सीधे दिल में उतर गयी ..ताजगी से लवरेज इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
आ० गुमनाम पिठौरागढ़ी जी ,
आपने रचना को मान दिया ,उत्साह वर्धन के लिए बहुत धन्यवाद.सादर.
waah waah khoob ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आ० जितेन्द्र 'गीत' जी ,
उत्साह वर्धन के लिए बहुत धन्यवाद.सादर.
मर्मस्पर्शी रचना आदरणीय विजय जी, बधाई स्वीकारें
आ० गोपाल जी, आपके आशीर्वचन पर पुनः नमन.
शर्मा जी
अद्भुत संवेदना i इससे अधिक क्या कहूं ?
आ० राजेश कुमारी जी,
प्रस्तुत रचना पर आपके उदगार ने रचना के साथ रचनाकार का भी मान बढ़ाया,कोटिश:आभार.
दिल छू गई रचना ....
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