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दोष थोड़ा सा समय का कुछ मेरी आवारगी
सीधे-सीधे चल न पायी इसलिए भी जिंदगी
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हम तुम्हें कैसे कहें अब दूरियों को पाट लो
कम न कर पाये जो खुद हम आपसी नाराजगी
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कल हवा को भी इजाजत दी न थी यूँ आपने
आज क्यों भाने लगी है गैर की मौजूदगी
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रात-दिन करने पड़ेंगे यूँ जतन कुछ तो हमें
कहने भर से दोस्तों ये किस्मतें कब हैं जगी
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घर जलाकर आप नाहक जा रहे हैं साथ में
ये सियासत तो न होगी आपकी फिर भी सगी
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पुरअसर होगी ‘मुसाफिर’ के जिगर पर भी सदा
हर गजल यारो किसी के प्यार में गर हो पगी
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(रचना - 17 जनवरी 2010)
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई सौरभ जी मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार l
आपने अब स्पष्ट किया है, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी. अब आप सही हैं.
शभ-शुभ
आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । गजल पर आपकी उपस्थिति के लिए आभार । जैसा कि आपने इस गजल में काफिए के विषय में पूछा है । दरअस्ल इसमें मैंने काफिये के बतौर अगी लिया है और इसमें रदीफ नहीं है । क्या अगी को बतौर काफिया नहीं लिया जा सकता ? मार्गदर्शन करें । यह भ्रम की स्थिति शायद भाई शिज्जू शकूर जी के प्रश्न का गलत जवाब दे दिये जाने के कारण पैदा हो गयी है ।
आपने जिस पंक्ति में संशोधन सुझाया है वह यथेष्ठ है । यह मेरी कहन को पुख्ता ही करता है कमजोर नहीं । भविष्य में शब्दों के चयन पर और गौर करूंगा । मार्गदर्शन करते रहिए । पुनः हार्दिक आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामीजी,
आपकी ग़ज़ल का काफ़िया कहाँ है ? बिना रदीफ़ ग़ज़ल हो सकती है, बिना काफ़िया नहीं. आपने यदि ’ई’की मात्रा को काफ़िया लिया है तो फिर मतले में ’गी’ की तुकान्तता नहीं होनी थी.
यह तो हुई एक बात.
दूसरी बात, कि जबतक बहुत जरूरत न हो मात्रा गिराना बदमज़ग़ी ही पैदा करता है. अब मतला के सानी को ही लें - सीधे-सीधे चल न पायी इसलिए भी जिंदगी
क्या इसे
राह सीधी चल न पायी इसलिए भी ज़िन्दग़ी कर सकते हैं क्या ?
क्या ऐसा करना आपकी कहन के माने को बहुत दूर ले जायेगा ? मुझे ऐसा लगा नहीं.
सादर
आओ भाई विजय निकोर जी , मेरे लिए रचना पर आपकी टिप्पणी का अर्थ एक पुरस्कार ही है . हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई जीतेन्द्र जी , रचना पर आपकी उपस्थिति से मनोबल बढ़ा . हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई संतलाल जी , प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई गुमनाम जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ0 राजेश बहन उत्साहवर्धन और त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद । त्रुटि संशाधित कर ली गयी है ।
आ0 भाई गिरिराज जी प्रशंसा और सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपके सुझावानुसार संशोधन कर लिया है । पुनः हार्दिक धन्यवाद ।
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