For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122    2122    2122    2122

********************************
चल  पड़ी नूतन  हवा  जब से शहर की ओर यारो
गाँव के  आँगन उदासी,  भर  रही  हर  भोर यारो
**
अब  बुढ़ापा द्वार  पर  हर  घर  के बैठा है अकेला
खो  गया  है  आँगनों से   बचपनों  का  शोर यारो
**
ढूँढते तो हैं  शिरा  हम, गाँव  जाती  राह का नित
पर  यहाँ  जंजाल  ऐसा  मिल  न पाता छोर यारो
**
हो गये कमजोर रिश्ते, अब दिलों के धन की खातिर
मंद   झोंके   भी   चलें  तो   टूटती   हर   डोर  यारो
**
हद से जादा भी उजाला, भय जगा  देता है मन में
ये  कहा  किसने,  जगाता  भय  अँधेरा  घोर यारो
**
कोसते रावण को  हर दिन, चल पड़े  जो पथ उसी के
किस हवस ने कर दिया अब, आचरण कमजोर यारो
**
सोच  लेना तुम मनुजता, है  अभी जीवित जगत में
देख   बेबस  की  दशा  यदि  नम  हुई  है  कोर यारो
**
क्या  सिनेमा  से  प्रभावित हम हुए हिंसा के आदी ?
अन्यथा  अब  कत्ल  तक देते कहाँ झकझोर यारो
**
रो रहा है जो ‘मुसाफिर’, भीड़ से  छुप के कहीं गर
सच थकन से तो नहीं पर, दुख से दुखता पोर यारो
**


मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर‘

***  

यह गजल आ0 भाई सौरभ जी के मार्गदर्शन में पूरी की गयी है । उनकी बेसकीमती सलाह के लिए मैं उनका आभारी हूँ । उन्होंने अपना कीमती समय मेरा मार्गदर्शन करने में लगाया इसके लिए उनका हार्दिक धन्यवाद ।

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:19am


आदरणीया मंजरी जी, गजल को इतना अधिक मान देने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:19am


आदरणीय भाई जवाहरलाल जी, गजल पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई । आपने सही कहा हमें रास्ते सुझाई नहीं दे रहे । या फिर यों भी कह सकते हैं कि हम मार्ग तलाशने का प्रयत्न ही नहीं कर रहे । हम यथास्थिति के इतने आदी हो गये हैं कि किसी भी बदलाव के लिए सहज तैयार ही नहीं होते । फिर भी आशा करनी ही होगी कि वह भोर अवश्य आयेगी जिसमें हमें रास्ते सुझाई देगे ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:18am


आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी , सदर अभिवादन । आपका स्नेहाशीष और प्रशंसा पाकर अति प्रसन्नता हुई । गजल में निहित कमियों के विषय में भी मार्गदर्शन करते रहिए । शुभ- शुभ ......

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:18am


आदरणीय भाई सुशील सरना जी , गजल को इतना मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद । ओ बी ओ परिवार के आप जैसे सभी सदस्यों के स्नेह का ही परिणाम है कि मैं गजल लेखन में निरंतर सुधार कर पा रहा हूं । स्नेह बनाये रखें यही कामना है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:18am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, की सराहना के लिए हार्दिक आभार । गजल पर आपकी उपस्थिति से निरंतर हौसला बढता है और खुशी होती है । अतः उपस्थिति बनाए रख मार्गदर्शन करते रहें । पुनः हार्दिक धन्यवाद ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:13pm

आदरणीय लक्ष्मण धामीजी,

सर्वप्रथम, आपकी ग़ज़ल में मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है कि आप इसकी प्रस्तुति के क्रम में धन्यवाद ज्ञापित करें. हमने तो बस इसके लिहाज पर नज़र डाली थी, बस !  आपकी ग़ज़ल इसी प्रारूप में थी. और क्या खूब ग़ज़ल हुई है ! 

बधाई स्वीकारें, आदरणीय. 

सादर

Comment by mrs manjari pandey on July 20, 2014 at 7:32pm
कोसते रावण को हर दिन, चल पड़े जो पथ उसी के
किस हवस ने कर दिया अब, आचरण कमजोर यारो
**
सोच लेना तुम मनुजता, है अभी जीवित जगत में
देख बेबस की दशा यदि नम हुई है कोर यारो
**

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी जितनी भी तारीफ़ की जाए काम है बेहतरीन हिंदी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 19, 2014 at 9:01pm

रो रहा है जो ‘मुसाफिर’, भीड़ से  छुप के कहीं गर
सच थकन से तो नहीं पर, दुख से दुखता पोर यारो

सभी दुखी हैं रस्ते दिखाई नहीं पड़ते या हम पहचान नहीं पाते 

रास्ते पहचान पायें कब वो होगी भोर यारों ...सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 2:54pm

सोच  लेना तुम मनुजता, है  अभी जीवित जगत में
देख   बेबस  की  दशा  यदि  नम  हुई  है  कोर यारो

बेहतरीन i बेहतरीन i बेहतरीन i साधुवाद धामी जी

Comment by Sushil Sarna on July 16, 2014 at 7:33pm

अब बुढ़ापा द्वार पर हर घर के बैठा है अकेला

खो गया है आँगनों से बचपनों का शोर यारो

निःशब्द हूँ आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति पर .... कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service