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घाट सौ-सौ हैं दिखाए तिश्नगी ने
कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने
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करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने
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राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने
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रात जैसे इक समंदर तम भरा हो
पार जिसको नित किया आवारगी ने
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झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार मेरे सत्य को अपना ठगी ने
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पास आना था हमें यूँ भी कठिन पर
दूर रक्खा आप को नाराजगी ने
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रचना मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर ’
Comment
इस बहुत सुन्दर गज़ल के लिए बधाई।
सभी आदरणीय विद्व जनों को उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद . आप सभी को ग़ज़ल पसंद आई यह मेरे लिए अति प्रशन्नता का विषय है .आप सभी का सुभाशीष पाकर धन्य हुआ . शुभ.. शुभ..
आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी गज़ल बहुत शानदार कही है , बधाइयाँ ॥
करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने
*राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने
पास आना था हमें यूँ भी कठिन पर
दूर रक्खा आप को नाराजगी ने ---------- लाजवाब शे र , आपको ढेरों दाद ॥
इन दो शेरों ने बहुत ही प्रभावित किया है -
करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने ... .
पास आना था हमें यूँ भी कठिन पर
दूर रक्खा आप को नाराजगी ने
इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी..
शुभ-शुभ
धामी जी
अति सुन्दर i आखिरी शेर कमाल है i
आदरणीय लक्ष्मण जी वर्तमान परिदृश्य को रचना के माध्यम से बखूबी चित्रित किया है आपने ..इस रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करे सादर
आज को बयां करती हुई गजल, हर एक शेर बहुत लाजवाब। दिली बधाइयाँ आपको आदरणीय लक्ष्मण जी
करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने..............सच! इंसान की फितरत
राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने.........ढोंगियों से भगवान बचाये
झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार मेरे सत्य को अपना ठगी ने.........बहुत कुछ कह दिया :))
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
शे'र दर शे'र बड़े तरतीब से कहे गए हैं --
"घाट सौ-सौ हैं दिखाए तिश्नगी ने
कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने
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करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने"
...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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