तुम्हारे फूल अलग रंग के क्यों लग रहे हैं आज
पत्तों का आकार भी बदला बदला सा है
तुम्हारे फूल और पत्ते ऐसे तो उगते न थे
पोषण किसी और श्रोत से तो प्राप्त नहीं करने लगे
जड़ या तना बदल तो नहीं लिया है तुमने
बेतुक की बडिंग तो नहीं करवा ली है
किसी और प्रजाति के पौधे से
प्रजातियाँ अच्छी बुरी तो नहीं होतीं
सभी अपनी जगह ठीक होतीं हैं
पर अपनी, अपनी होती है
तुक की होती है !
बात केवल स्वतंत्रता पर खत्म नहीं होगी
इमानदारी तक भी जा सकती है
मौलिकता तक तो जाना ही है
तुम अब वो रहे ही कहाँ
जड़ें बदल बदल कर क्या से क्या हो चुके हो
उन्नति नहीं कह पा रहा हूँ मै इस परिवर्तन को
वास्तविकता खोने की क़ीमत है ये ?
और फिर ,
अगर मै, मै ही नहीं रहा तो क्या रहा ?
तुम , तुम ही न रहे तो क्या बचा ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी रचना का मान बड़ा किया ॥ रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ॥
आदरणीय गिरिराजभाईजी,
संभावनाओं को भटकते हम अक्सर देखते हैं. लेकिन कुछ कर नहीं पाते कि सामाजिक विवशता आड़े आती है. लेकिन वहीं सामाजिक दायित्व एक संवेदनशील व्यक्ति को प्रोत्साहित भी करता है कि वह उन विवशताओं के पार जा कर खरी-खरी बात कहे. साहित्य एवं कला पक्ष ही वह संबल देता है ताकि सटीक तथ्य संप्रेष्य हों.
इस कविता का कथ्य, उसकी संप्रेषणीयता और इसकी शैली ने चकित किया है. क्योंकि यह आपकी अबतक की प्रस्तुतियों से तनिक अलग है. लेकिन यह भी कहना चाहूँगा कि एक पाठक के तौर पर मैं इस रचना की प्रस्तुति के प्रति आश्वस्त हूँ.
इस अति प्रखर रचना के होने पर सादर बधाइयाँ तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ आदरणीय
आदरणीय केवल भाई , रचना की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीया राजेश जी , रचना के अनुमोदन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , आपको रचना पसंद आयी तो लिखना सफल हो गया , सराहना के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय शिज्जु भाई , अतुकांत रचना की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥
आ0 भण्डारी भाईजी, बहुत ही सुन्दर, सामयिक और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
रचना के माध्यम से नव पीढ़ी को बहुत अच्छा सन्देश दिया है ,बहुत सुन्दर रचना ,बधाई आपको आ० गिरिराज जी |
रचना के माध्यम से आपने आज की एक कडवी सच्चाई को बयाँ किया है
बात केवल स्वतंत्रता पर खत्म नहीं होगी
इमानदारी तक भी जा सकती है
मौलिकता तक तो जाना ही है................सही है , सब स्वतंत्र है पर बिन अनुशाशन के. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी
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