For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत ---- तुम , तुम ही न रहे तो क्या बचा ? ( गिरिराज भंडारी )

तुम्हारे फूल अलग रंग के क्यों लग रहे हैं आज

पत्तों का आकार भी बदला बदला सा है

तुम्हारे फूल और पत्ते ऐसे तो उगते न थे

 

पोषण किसी और श्रोत से तो प्राप्त नहीं करने लगे

जड़ या तना बदल तो नहीं लिया है तुमने

बेतुक की बडिंग तो नहीं करवा ली है

किसी और प्रजाति के पौधे से

प्रजातियाँ अच्छी बुरी तो नहीं होतीं  

सभी अपनी जगह ठीक होतीं हैं

पर अपनी, अपनी होती है 

तुक की होती है !

 

बात केवल स्वतंत्रता पर खत्म नहीं होगी

इमानदारी तक भी जा सकती है 

मौलिकता तक तो जाना ही है

 

तुम अब वो रहे ही कहाँ

जड़ें बदल बदल कर क्या से क्या हो चुके हो

उन्नति नहीं कह पा रहा हूँ मै इस परिवर्तन को

वास्तविकता खोने की क़ीमत है ये ?

 

और फिर ,

अगर मै, मै ही नहीं रहा तो क्या रहा ?

तुम , तुम ही न रहे तो क्या बचा ?

         ****************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  

 

 

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on July 12, 2014 at 10:44pm

प्रिय छोटे भाई, 

स्वयं को अति आधुनिक कहलाने के चक्कर में आज की नकलची युवा पीढ़ी और उन्हें बढ़ावा देने वाले अभिभावकों  की सोच और उनकी खिचड़ी संस्कृति पर करारा कटाक्ष । हालाकि बाद में वही लोग तन मन की पीड़ा भोगते और पछताते भी हैं लेकिन तब तक बहुत  देर हो चुकी होती है। 

कड़वी सच्चाई की हार्दिक बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 12, 2014 at 9:49pm

वाह क्या बात है बहुत खूब भावनाओं को बहुत उन्नत एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है आपने बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 7:41pm

आदरणीय विजय भाई , विचारों के अनुमोदन के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 7:40pm

आदरणीय जगदीश भाई , आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी रचना का मान बढ़ा दिया । आपकी सराहना के लिये हार्दिक आभार ॥

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 12, 2014 at 5:52pm

जड़ से जुदा हो रहे आज के युवाओं के लिए जरूरी सन्देश दिया है आपने आ० गिरिराज भाई , बहुत बधाई.

Comment by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on July 12, 2014 at 5:43pm

''तुम अब वो रहे ही कहाँ

जड़ें बदल बदल कर क्या से क्या हो चुके हो

उन्नति नहीं कह पा रहा हूँ मै इस परिवर्तन को

वास्तविकता खोने की क़ीमत है ये ?''

वास्तविकता खोने की कीमत पर तथाकथित उन्नति विकास नहीं हो सकती। जहाँ अपनी पहचान ही न हो वह पतन ही कहलायेगा। एक सही विषय को शब्द देने के लिए बधाई ,भाई गिरिराज भंडारी जी। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 3:41pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , मै हमेशा आपके आस पास ही हूँ , आपका स्नेह मिला ! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 12, 2014 at 2:37pm

अद्भुत, अनिवर्चनीय , कहाँ हो मित्र  तुम्हारे हाथ चूम लूं  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Jul 12
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service