मील का पत्थर …
कल जो गुजरता है....
जिन्दगी में....
एक मील का पत्थर बन जाता है//
और गिनवाता है....
तय किये गये ....
सफर के चक्र की....
नुकीली सुईयों पर रखे....
एक-एक कदम के नीचे....
रौंदी गयी....
खुशियों के दर्द की....
न खत्म होने वाली दास्तान//
दिखता है ....
यथार्थ की....
कंकरीली जमीन पर....
कुछ दूर साथ चले....
नंगे पांवों के....
दम तोड़ते निशान//
अहसास कराता है.....
ख़्वाबों के फलक पर....
बेनूर होते आफताबी अरमान//
रोज,हर रोज....
शाम ढले हर आज....
अपनी केंचुली बदल.....
फिर जिन्दगी की राह में ....
मील का पत्थर बन जाता है//
दर्द की किताब में....
एक वर्क और जुड़ जाता है//
इक मुक्कमल आसमान की चाह में ....
इंसान जाने....
कहाँ-कहाँ से गुजर जाता है//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया सरना जी
बहुत उम्दा i क्या बात है -
दर्द की किताब में.... एक वर्क और जुड़ जाता है//
इक मुक्कमल आसमान की चाह में .... इंसान जाने....
कहाँ-कहाँ से गुजर जाता है//
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