For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक ज़माना हो जाता है …

इक ज़माना हो जाता है …

आदमी
कितना छोटा हो जाता है
जब वो पहाड़ की
ऊंचाई को छू जाता है
हर शै उसे
बौनी नज़र आती है
मगर
पाँव से ज़मीं
दूर हो जाती है
उसके कहकहे
तन्हा हो जाते हैं
लफ्ज़ हवाओं में खो जाते हैं
हर अपना बेगाना हो जाता है
ऊंचाई पर उसकी जीत
अक्सर हार जाती है
वो बुलंदी पर होकर भी
खुद से अंजाना हो जाता है
ज़मी के बशर तो
ज़मीं पर ज़िंदा रहते हैं मगर
ज़मीं के वास्ते वो
इक ज़माना हो जाता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 503

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 29, 2014 at 7:44pm

आदरणीय विजय निकोरे   जी रचना के भावों पर आपकी  स्वीकृति ने उसका जो मान बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 29, 2014 at 7:43pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय  जी रचना के भावों का आपकी आत्मीय स्वीकृति ने उसका जो मान बढ़ाया है उसके लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। 

Comment by Sushil Sarna on July 29, 2014 at 7:41pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 29, 2014 at 7:40pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by vijay nikore on July 29, 2014 at 1:21pm

रचना के भाव बहुत अच्छे लगे। बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2014 at 10:14pm

आपकी यह कविता कई-कई तह में सिमटी हुई धीरे-धीरे परत-दर-परत खुलने लगती है, आदरणीय सुशीलभाईजी. पंक्तियों के साथ नहीं, समाप्त होने के बाद. ऐसा बहुत कम होता है. लेकिन जब होता है कविता जीती हुई दिखती है.
प्रस्तुति से मन प्रसन्न है.


बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, आदरणीय.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:56pm

आदरणीय शुशील जी ..इस अद्भुत चिंतन के लिए आपको तहे दिल बधाई ..आपकी रचना को महसूस किया जा सकता है ..बेहतरीन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 11:43am

आदरणीय सुधील भाई , जीवन की एक कटु सत्य को आपने शब्द दिये हैं , सच है चोटी पर पहुँच कर आदमी अकेला हो जाता है , वैसे भी चोटी पर तो एक ही रह सकता है । कविता के लिये बधाइयाँ

Comment by Sushil Sarna on July 27, 2014 at 2:47pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर  जी रचना के भावों को आपकी स्वीकृति ने सृजनकर्ता को जो ऊर्जा दी है उसका हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 27, 2014 at 2:46pm

आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना के भावों को स्वीकृति देती अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service