मील का पत्थर …
कल जो गुजरता है....
जिन्दगी में....
एक मील का पत्थर बन जाता है//
और गिनवाता है....
तय किये गये ....
सफर के चक्र की....
नुकीली सुईयों पर रखे....
एक-एक कदम के नीचे....
रौंदी गयी....
खुशियों के दर्द की....
न खत्म होने वाली दास्तान//
दिखता है ....
यथार्थ की....
कंकरीली जमीन पर....
कुछ दूर साथ चले....
नंगे पांवों के....
दम तोड़ते निशान//
अहसास कराता है.....
ख़्वाबों के फलक पर....
बेनूर होते आफताबी अरमान//
रोज,हर रोज....
शाम ढले हर आज....
अपनी केंचुली बदल.....
फिर जिन्दगी की राह में ....
मील का पत्थर बन जाता है//
दर्द की किताब में....
एक वर्क और जुड़ जाता है//
इक मुक्कमल आसमान की चाह में ....
इंसान जाने....
कहाँ-कहाँ से गुजर जाता है//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर आपकी आत्मीय स्नेहाशीष का हार्दिक आभार। कुछ अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ।
आदरणीय संतलाल करून जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। कुछ अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ।
आदरणीय जितेन्द्र जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। कुछ अपरिहार्य कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ।
एक विचारपरक कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय सुशील भाईजी.. .
आदरणीय सुशील समा जी,
वर्तमान जीवन के विडंबन पर उत्कृष्ट व्याख्यात्मक कविता, अत्यंत प्रभावपूर्ण; साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
यथार्थ पर बहुत ही सुंदर रचना. बधाई स्वीकारिये आदरणीय शुशील जी
आदरणीय सरना सर बहुत खूब कहा आपने बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीय narendrasinh chauhan जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
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