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प्रीत पहेली ....

प्रीत पहेली ....

मन तन है
या तन मन है
ये जान सका न कोई
भाव की गठरी
बाँध के अखियाँ
कभी हंसी कभी रोई
प्रीत पहेली
अब तक अनबुझ
हल निकला न कोई
बैरी हो गया
नैनों का सावन
भेद छुपा न कोई
सीप स्नेह में लिपटा मोती
बस चाहे इतना ही
सज जाऊं
उस तन पे जाकर
जिसकी छवि हृदय में सोई

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 407

Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 17, 2014 at 9:20pm

आदरणीय  सौरभ पाण्डेय  जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 6:59pm

आपकी यह प्रस्तुति जन-मानस की टीस को स्वर देती एक बहुत ही भावुक गीत बन सकती थी. आपकी भावनाओं को हृदय से स्वीकार करते हुए इस प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद.
शुभेच्छाएँ.

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2014 at 9:21pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2014 at 3:03pm

सरना जी

उत्तम भाव है i  ------सीप - स्नेह में लिपटा  मोती i

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 6:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना पर आपकी आत्मीय   अभिव्यक्ति  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 6:58pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी रचना पर आपकी आत्मीय   प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 6:57pm

आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब रचना पर आपकी मधुर  प्रशंसा का हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 5:56pm

बहुत सुन्दर प्यारी सी प्रस्तुति ,बधाई आपको आ० सुशील सरना जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 9, 2014 at 12:19am
" सीप स्नेह में लिपटा मोती
बस चाहे इतना ही
सज जाऊं
उस तन पे जाकर
जिसकी छवि हृदय में सोई "
सुन्दर . व्यवहारिक . बधाई आ o सुशील सरना जी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:17pm

वाह आदरणीय सुशील सरना सर बहुत बढ़िया दिली बधाई स्वीकार करें

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