" अरे..! आओ बेटा रजनी, और सुनाओ कैसी हो..? . बड़े दिनों बाद आना हुआ.. अरे हाँ तुमने अपने बेटे , बिट्टू को नही लाई. वो वहां तुम्हारे बिन रोयेगा तो.." राधेश्याम जी ने अखबार के पन्नो की घड़ी करते हुए कहा
" प्रणाम चाचाजी....सब कुछ कुशल है.. बिट्टू तो बहुत परेशान करने लगा था , दिन भर मम्मी मम्मी ..!! . मैंने उसे टेलीविजन का ऐसा शौक लगाया है की, उसे मेरी बिलकुल भी जरुरत नहीं. शाम तक आराम से जाउंगी.." रजनी ने बड़ी चैन की सांस लेते हुए कहा
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत हर्षित हूँ. आप का कहना बिलकुल उचित है, 'तुमने' के स्थान पर 'तुम ' ही होना चाहिए। दरअसल मुझसे कभी -कभी रचनाओं में क्षेत्रीय बोलचाल की भाषा का उपयोग हो जाता है जो त्रुटि ही है. आपके मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विनय जी, हमेशा यूँही स्नेह बनाये रखियेगा :))
सादर !
बढ़िया लघुकथा लिखी आपने , बस " तुमने अपने बेटे कि जगह तुम अपने बेटे " शायद ज्यादा उचित होता | बधाई आपको |
आपने लघुकथा के सन्देश को स्पष्ट कर दिया, यह लेखनी की सार्थकता का प्रमाण है आदरणीय गिरिराज जी. स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा.
सादर!
रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया राजेश दीदी. स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आप बिलकुल सही कह रहीं है आदरणीया श्रीमती मंजरी जी. किन्तु यह आदतें हम ही डालते है उनमे , ताकि उन्हें हमारी कम जरुरत पड़े. फिर उनसे समय पर उम्मीद रखना बेकार है कि वो हमारे काम आयें या हमें समझें .
रचना पर आपकी उपस्थिति का हार्दिक आभार . सादर!
रचना को आपका आशीर्वाद मिला, लेखनकर्म सार्थक हुआ. आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय डा.गोपाल जी
सादर!
आदरनीय जितेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर विषय उठाया है आपने लघुकथा मे । अब तो आदत लगाने की भी ज़रूरत नही पड़ती , बच्चे स्वयं लगा लेते हैं । माँ को इसमे अपनी जीत नही हार दिखनी चाहिये ।एक अच्छी लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥
बहुत सही विषय को केन्द्रित करके लिखी एक सार्थक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई जितेन्द्र भैया |
जीतू जी
आपने सही विषय उठाया है i आज के बच्चो को काउच -पोटैटो बनने से बचाना है i यह अभिभावक का परम कर्तव्य है i
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