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आत्मपीडा में अनुभूति सुख की लिए

दग्ध होता रहा अनुभवो  में सदा

सत्य ही उस करुण के ह्रदय कोश में

पल रहा कोई जीवंत अनुराग है i

 

मृत्यु आती नहीं चैन मिलता नहीं

युद्ध होता है विष चेतना में प्रबल

दंश लेता है जब फिर न देता लहर

क्रुद्ध फुंकारता नेह का नाग है i

 

मौन बेसुध पड़ा प्राण के अंक में

याद की वेदना में सजल जो हुआ

स्वेद-श्लथ गात में कुछ चुभन सी लिए

स्नेह सोया हुआ था गया जाग है  i

 

सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी

वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया

मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए

सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है

 

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है i

 

(अप्रकाशित व मौलिक)

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 17, 2014 at 8:13pm

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं
वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है
गीत तो आंसुओ में ढले है सदा
यदि ह्रदय में प्रबल आग ही आग है .... वाह वाह और बस वाह

निःशब्द हूँ सर आपकी इस रचना के आगे .... तर्रीफ का हर शब्द बौना लगता है आपकी इस यथार्थ प्रबल दिलकश प्रस्तुति के आगे … बस आपकी जय हो जय हो जय हो सर

Comment by mrs manjari pandey on July 17, 2014 at 7:33pm
आदरणीय डॉक्टर गोपालनारायण जी भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ

सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी
वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया
मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए
सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है
Comment by vijay nikore on July 17, 2014 at 7:15pm

आपकी रचना के सभी भाव अच्छे लगे, परन्तु निम्न तो कुछ और ही हैं ... पढ़ कर बहुत आनन्द आया। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल जी। सराहना पुन: भेज रहा हूँ, क्यूँकि लिखते हुए  निम्न पंक्तियाँ उद्धृत करना भूल गया था...

//सिसकियो की व्यथा आंसुओ ने सुनी

वाग्देवी ने उसको मुखर कर दिया

मन चकित दर्प कवि-बोध का भ्रम लिए

सोचता इसमें क्या उसका प्रतिभाग है

 

शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं

वेदना के बिना व्यर्थ  अनुराग है

गीत  तो आंसुओ में ढले है सदा

यदि ह्रदय  में प्रबल आग ही आग है I//

पुन: हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल जी।

 

Comment by Zaif on July 17, 2014 at 6:06pm
बहुत सुन्दर सर जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 4:17pm

वेदिका जी

मै आभार प्रकट करता हूँ  i  आपकी गजल  'नजर मुझ पे कर दे ' मेरी दिमाग में बस गयी है i आपसे प्रोत्साहन मिला मेरा सौभाग्य है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 4:14pm

आदरणीय निकोर जी

आपका आभार i शत-शत नमन i

Comment by वेदिका on July 17, 2014 at 3:14pm
शब्द-व्यायाम से गीत बनते नहीं
वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है
गीत तो आंसुओ में ढले है सदा
यदि ह्रदय में प्रबल आग ही आग है i

क्या शानदार भाव उभर के आया है। दुसरे बंद ने भी प्रभावित किया।
शुभकामनाएं आ0 गोपाल जी!
Comment by vijay nikore on July 17, 2014 at 3:11pm

आपकी रचना के सभी भाव अच्छे लगे, परन्तु निम्न तो कुछ और ही हैं ... पढ़ कर बहुत आनन्द आया। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल जी।

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