2212 / 2212 / 2212 / 2212
दिल के मकाँ में यार कोई दिलकुशा मिलता नहीं
भीगा पड़ा है आशियाँ अब दिलशुदा मिलता नहीं |
हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया
उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं |
उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर
ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |
उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें
उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |
यों दिलज़दा मेरा फ़साना, दिल लगाना बेक़दर
जो लापता ढूढें कहाँ दिल गुम हुआ मिलता नहीं |
(मौलिक व अप्रकाशित)
--- संतलाल करुण
Comment
आदरानीयाक राजेश कुमारी जी,
आप की सराहना से ह्रदय अभिभूत हुआ; हार्दिक आभार !
आदरणीया वेदिका जी,
रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार !
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
रचना की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !
उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर
ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |---लाजबाब
उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें
उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |-----शानदार
सभी अशआर एक से बढ़कर एक ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने आ० संतलाल जी तहे दिल से दाद कबूलिये
आदरणीय इस ग़ज़ल के लिए सादर धन्यवाद.
यों दिलज़दा मेरा फ़साना, दिल लगाना बेक़दर
जो लापता ढूढें कहाँ दिल गुम हुआ मिलता नहीं .. .
बहुत खूब !!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
आप की सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन का आनंद दुगुना हो गया; सहृदय आभार !
आदरणीय संतलाल भाई , खूब सूरत गज़ल कही है आपने , मेरी दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया
उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं - लाजवाब शेर , बधाइयाँ ॥
आदरणीया मीना पाठक जी,
ग़ज़ल को लेकर आप के प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !
आदरणीया मंजरी जी,
ग़ज़ल आप को पसंद आई, प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !
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