चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया
आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |
हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में
क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |
पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी
हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |
होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |
मातमी अंदाज़ में लोगों का जमघट था लगा
साथ जीने की सज़ा ने मौत को झुठला दिया |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
--- संतलाल करुण
Comment
आदरणीय जे.एल.सिंह जी,
ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए सहृदय आभार !
होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |
वाह वाह क्या अंदाज है सर जी
आपने तो पूरे गुलशन को हे बहका दिया...सादर!
आदरणीया डॉ. प्राची जी,
आप के प्रेरक उद्गार और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !
बहुत गहरी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है शेर दर शेर
मन को कचोटते से हैं इन अशआरों के कहन...प्रस्तुत ग़ज़ल पर मेरी दिली शुभकामनाएं प्रस्तुत हैं ..स्वीकार कीजिये
आदरणीय सुशील जी,
ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !
होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल .... हर शेर खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ है .... इस खूबसूरत पेशकश के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय
आदरणीय शशि मेहरा जी,
ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए हृदयपूर्वक आभार !
आदरणीया कुंती जी,
ग़ज़ल प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !
आदरणीया गीतिका जी,
सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !
आदरणीया मंजरी मैडम,
आशा है आस्ट्रेलिया से वापस बनारस आ गई होंगी और सकुशल होंगी | हम कुशलपूर्वक हैं और सुलतानपुर में ही हैं | ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार ! वेबसाइट का लिंक दे रहा हूँ -- http://bit.ly/1jkf2w4
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