For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साथ जीने की सज़ा

चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया

आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |

 

हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में

क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |

 

पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी

हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |

 

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

 

मातमी अंदाज़ में लोगों का जमघट था लगा

साथ जीने की सज़ा ने मौत को झुठला दिया |

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

--- संतलाल करुण

Views: 638

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Santlal Karun on June 28, 2014 at 6:24pm

आदरणीय जे.एल.सिंह जी,

ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए सहृदय आभार !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 28, 2014 at 12:50pm

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

वाह वाह क्या अंदाज है सर जी 

आपने तो पूरे गुलशन को हे बहका दिया...सादर!

Comment by Santlal Karun on June 26, 2014 at 8:39pm

आदरणीया डॉ. प्राची जी,

आप के प्रेरक उद्गार और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:13pm

बहुत गहरी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है शेर दर शेर 

मन को कचोटते से हैं इन अशआरों के कहन...प्रस्तुत ग़ज़ल पर मेरी दिली शुभकामनाएं प्रस्तुत हैं ..स्वीकार कीजिये 

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 5:17pm

आदरणीय सुशील जी,

ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !

Comment by Sushil Sarna on June 23, 2014 at 5:02pm

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल .... हर शेर खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ है .... इस खूबसूरत पेशकश के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:40pm

आदरणीय शशि मेहरा जी,

ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए हृदयपूर्वक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:38pm

आदरणीया कुंती जी,

ग़ज़ल प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:36pm

आदरणीया गीतिका जी,

सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:34pm

आदरणीया मंजरी मैडम,

आशा है आस्ट्रेलिया से वापस बनारस आ गई होंगी और सकुशल होंगी | हम कुशलपूर्वक हैं और सुलतानपुर में ही हैं | ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार ! वेबसाइट का लिंक दे रहा हूँ --  http://bit.ly/1jkf2w4 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service