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दिल या ख़ुदा मिलता नहीं

 2212  / 2212 /  2212 /  2212

 

दिल के मकाँ में यार कोई दिलकुशा मिलता नहीं

भीगा पड़ा है आशियाँ अब दिलशुदा मिलता नहीं |

 

हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया

उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं |

 

उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर

ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |

 

उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें 

उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |

 

यों दिलज़दा मेरा फ़साना, दिल लगाना बेक़दर  

जो लापता ढूढें कहाँ दिल गुम हुआ मिलता नहीं |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

--- संतलाल करुण                      

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Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 9:25pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,

आप ने ग़ज़ल पर तदात्मक प्रतिक्रिया दी; हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on July 20, 2014 at 9:23pm

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी,

ग़ज़ल पर प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 20, 2014 at 9:11pm

आदरणीय\

खूबसूरत ग़ज़ल हुयी है i

Comment by mrs manjari pandey on July 20, 2014 at 7:14pm
आदरणीय संत लाल सर जी बहुत ही उम्दा शेर। अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Meena Pathak on July 20, 2014 at 6:19pm

बहुत सुन्दर गज़ल ..बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 20, 2014 at 9:51am

उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर

ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं.....वाह! बहुत खूब. क्या बात कही है आपने आदरणीय संतलाल जी, दिली बधाई स्वीकार कीजियेगा

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