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वह राज तंत्र था --डा० विजय शंकर

वह एक राजतंत्र था
एक द्रौपदी थी , एक ही ,
वह भी थी उसी कुल की .
पिता तुल्य राजा था वह ,
सचमुच पूरा अंधा था वह .
पितामह भी थे, अंध नहीं
पर अंध स्वामिभक्त थे,
सत्ता नहीं सत्ताधारियों के
प्रति समर्पित, आसक्त थे .
चीर हरण था , वह भी
संकेतात्मक , विफल .
पर ले डूबा कुल वंश ,
अंध स्वामिभक्त बड़े
अधिष्ठाता भी नहीं बचे ,
बड़े कष्ट से मुक्त हुए .
हुए नष्ट पाप के सब सहभागी
सती जस माता रही अभागी .
बचा संग अंधा राजा , रोने
और आंसू बहाने को .
राज गया , पाठ गया
मान गया, सम्मान गया
निंदनीय स्मृतियाँ छोड़ गया .
अपराधी था , वह
राजा था तो क्या हुआ
दंड का पूरा भागी था
वह तंत्र, राजतंत्र था ,
वह राज तंत्र था .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 27, 2014 at 11:41am
God bless you .
Regards .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 27, 2014 at 1:03am

शुभेच्छाओं के लिए सादर आभार आदरणीय डॉक्टर साहब.. 

 

वैसे, पढ़ने-लिखने में मैं जरा यों ही सा हूँ, .. सो डॉक्टरेट आदि की संज्ञा से ही खौफ़ ही खाता हूँ.

फिरभी, आपकी सलाह है, आदरणीय.. सर-आँखों पर. ..

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2014 at 8:52pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , डॉक्ट्रेट तो कर ही डालिये , कहने का असर तो पड़ता है। शेष आपके सुझाव पर ध्यान रखूंगा।
सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2014 at 6:58pm

१.  आप मुझे बलात डॉक्टरेट दिलवा कर ही मानेंगे ? साहब, मैं डॉक्टर नहीं हूँ. यह पिछली बार ही स्पष्ट कर चुका हूँ. कृपया इस मानद डिग्री को मुझ जैसों पर न चेंपिये, सर ! प्लीज..

२. मैं आपकी रचना के मूल भाव को समझ पाया हूँ, आदरणीय. तभी तो मैंने इसकी मुक्त प्रशंसा की है. फिर क्यों आप ग्लानि-भाव से भर उठे ?

३. हम अपनी रचनाओं के पाठकों के नाम धन्यवाद ज्ञापन के क्रम में शुद्ध-शुद्ध लिखा करें, तो पाठकों को भी रचना पर दुबारा आने का उत्साह बनता है.

सादर. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2014 at 5:12pm

आदरणीय डॉ. सारौभ पांडे जी, बधाई के लिए धन्यवाद , बहुत .
संकेत यह था की राजतंत्र में जब राजा सबकुझ होता था , तीनों शक्तियों का स्वामी होता था तब भी वह अपराथ बोध और दंड से मुक्त नहीं था, पर अन्य तंत्र में ऐसा होता दिखता नहीं , शायद मैं इसे प्रकट कर नहीं पाया .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2014 at 1:57pm

लाक्षणिकता ने इतिहास के ’अघट’ को एक नया आयाम दिया है. आपकी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2014 at 6:44pm
आदरणीय डॉ o गोपाल नरायन जी , आपको बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 25, 2014 at 10:54am

आदरणीय विजय जी

आपके  कहन ने इस चिर परिचित मिथक-कथा  को एक नया रूप दिया जो प्रभावित करता है i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 24, 2014 at 10:47pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना को आपने पसंद किया अच्छा लगा . बधाई के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 24, 2014 at 10:45pm
आदरणीय जीतेन्द्र जी , रचना को आपने मनोयोग से पढ़ा , पसंद किया अच्छा लगा . बधाई के लिए धन्यवाद .

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