हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !
इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !
ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं पड़ेगा.. जब हामिद वापस चला जायेगा, अपनी बहुरिया के साथ, अपने बेटे के साथ.. "
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय प्रेम चन्द जी का हामिद वाकई में बड़ा हो गया , गल्फ में जॉब में है ,ईद में फ़ूड प्रोसेस्सर ले आया दादी के लिए . पर कितने हामिद हालात ने नये बना दिए , जो अब चिमटा भी नहीं ला पाते अपनी दादी के लिए , क्यों कि चिमटा अब जेब खर्च के पैसों में आ ही नहीं सकता और दादी को रोटी तो वैसे ही बनानी पड़ती है . न रोटी बदली , न रोटी का बनाना और न रोटी की जरूरत . शायद प्रेम चंद जी खुश हो जाएँ अगर हम सबके , सबके लिए दो रोटी आसान कर दें.
आदरणीय सौरभ जी , नई कल्पनाओ के साथ हामिद का पुनरागमन बहुत अच्छी प्रस्तुति है ,बधाई . पर समस्या वहीँ की वहीँ है और अब कुछ अधिक जटिल है .
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