कुवत्स ने पिता को देखा जिनके दोनों नाक में आक्सीजन की नली लगी थी I अगर स्वस्थ होते तो आज ही के दिन उन्हें रिटायर होना था I उसे डाक्टर के शब्द याद आये –‘कुछ बचा नहीं, ज्यादा से ज्यादा दो दिन, बस I’ बेटे ने सोचा अगर आज कैजुअलिटी न हुयी तो मुफ्त की नौकरी तो जायेगी ही, बीमा अदि का पूरा पैसा भी नहीं मिलेगा ---- I
उसने चोर-दृष्टि से इधर –उधर देखा I आस-पास कोई न था I अचानक आगे बढ़कर उसने एक नाक से नली हटा दी I फिर वह दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया और कारीडोर में रिश्तेदारों के बीच बैठी अपनी माँ के पास जाकर उनकी पीठ पर सर रख रोने लगा I माँ ने कहा –‘मत रो बेटा ! तू ही तो हमारा सहारा है I ’
[मौलिक व् अप्रकाशित ]
Comment
मीना जी
निश्चय ही अकल्पनीय सत्य है यह i सादर i
अखिलेश जी
आपकी कविता ने कथा का मान बढाया i सादर i
महनीया
आपकी संस्तुति मेरे लिये प्रेरणा की वस्तु है i सादर i
केवल जी
आपका आभार प्रकट करता हूँ i
शुभ्रांशु जी
आप स्वय बहुत अच्छा लिखते हैं i आपका आभार i
माननीय प्राची जी
आपकी संस्तुति मेरे लिए महत्वपूर्ण है i
महनीया सीमाहरी जी
मैंने यही सोचकर लिखा कि आज के युग में ऐसा हो रहा है i
विनयकुमार जी
आपकी स्वीकृति का आभारी हूँ i
विजय जी
दुखद तो है पर अब यह सत्य भी हो रहा है i
आदरणीय लडीवाला जी
आपका आभार i
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