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कुवत्स ने पिता को देखा जिनके दोनों नाक में आक्सीजन  की नली लगी थी I अगर स्वस्थ होते तो आज ही के दिन उन्हें रिटायर होना था I उसे डाक्टर के शब्द याद आये –‘कुछ बचा नहीं, ज्यादा से ज्यादा दो दिन, बस I’ बेटे ने सोचा अगर आज कैजुअलिटी न हुयी तो मुफ्त की नौकरी तो जायेगी ही, बीमा अदि का पूरा पैसा भी नहीं मिलेगा ---- I

उसने चोर-दृष्टि से इधर –उधर देखा I आस-पास कोई न था I अचानक आगे बढ़कर उसने एक नाक से नली हटा दी I फिर वह दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया और कारीडोर में रिश्तेदारों के बीच बैठी अपनी माँ के पास जाकर उनकी पीठ पर सर रख रोने लगा I माँ ने कहा –‘मत रो बेटा ! तू  ही तो हमारा सहारा है I ’

 

[मौलिक व् अप्रकाशित ]                  

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:48pm

मीना जी

निश्चय ही अकल्पनीय सत्य है यह i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:47pm

अखिलेश जी

आपकी कविता ने कथा का मान बढाया i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:46pm

महनीया

आपकी संस्तुति मेरे लिये  प्रेरणा की वस्तु है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:44pm

केवल जी

आपका आभार प्रकट करता हूँ  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:43pm

शुभ्रांशु जी

आप स्वय बहुत अच्छा  लिखते हैं i आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:42pm

माननीय प्राची जी

आपकी संस्तुति  मेरे लिए महत्वपूर्ण है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:40pm

महनीया  सीमाहरी जी

मैंने यही सोचकर लिखा कि आज के युग में ऐसा हो रहा है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:39pm

विनयकुमार जी

आपकी  स्वीकृति  का आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:37pm

विजय जी

दुखद तो है पर अब यह सत्य भी हो रहा है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 7:36pm

आदरणीय लडीवाला जी

आपका आभार i

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